नि:संदेह संस्था का उद्भव समाज के ताने बाने के तंतुओं से होता है और एक ही ध्येय परिलक्षित होता है कि समस्या के निराकरण संगच्छध्वम् भाव से हो ,लेकिन कालान्तर में अपेक्षाएँ के बलवती होजाने पर संस्था मनोमालिन्यभावों के भारतले दब सी जाती है।
संस्था परमावश्यक है समस्याओं के समाधान के लिये ,पर निस्वार्थ भाव से।
नि:संदेह संस्था का उद्भव समाज के ताने बाने के तंतुओं से होता है और एक ही ध्येय परिलक्षित होता है कि समस्या के निराकरण संगच्छध्वम् भाव से हो ,लेकिन कालान्तर में अपेक्षाएँ के बलवती होजाने पर संस्था मनोमालिन्यभावों के भारतले दब सी जाती है।
संस्था परमावश्यक है समस्याओं के समाधान के लिये ,पर निस्वार्थ भाव से।