बाजार को ऑपरेटरों से निजात नहीं

कभी देश के भीतर के घोटाले तो कभी देश के बाहर के घटनाक्रम। शेयर बाजार पर इनकी ऐसी वक्री दृष्टि पड़ी हुई है कि आम निवेशकों के मन में तमाम भय व आशंकाओं ने घर कर लिया है। वे अपने हाथ बांधकर बैठ गए हैं। उनको लगता है कि बाजार अब तक के शिखर के करीब पहुंच चुका है तो कहीं पलीता न लग जाए। लेकिन हमें लगता है कि उनकी तमाम आशंकाएं निराधार हैं।

यूरोप के ऋण संकट का साया लंबे समय से लहरा रहा है। लेकिन पुर्तगाल, आयरलैंड, ग्रीस व स्पेन (पिग्स) जैसे तमाम यूरोपीय देशों के ऋण की अदायगी दिसंबर 2012 से पहले नहीं होनी है। इसलिए हाल-फिलहाल इन देशों के दिवालिया होने की गुंजाइश नहीं है। छोटे-मोटे डिफॉल्ट हो सकते हैं, लेकिन उनका खास असर नहीं पड़ेगा। उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के झगड़े का अमेरिका के लिए सामरिक महत्व है, भारत के लिए नहीं। भारत की केवल 24 कंपनियों का बिजनेस कोरिया से जुड़ा है, वह भी बहुत मामूली स्तर पर। जिस तरह की गोलीबारी दोनों कोरिया के बीच में चली है, वैसी तो हम पाकिस्तान से बराबर झेलते रहते हैं। फिर अफगानिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी हमारी तनातनी अक्सर बन जाती है। इसलिए उत्तर व दक्षिण कोरिया की लडाई हमारे लिए बेमानी है।

यह सच है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी तक बुरे वक्त से उबर नहीं पाई है। ओबामा सरकार ने क्यूई-2 के तहत करीब 600 अरब डॉलर के नोट अर्थव्यवस्था में डाल दिए हैं। इसके अगले चरण की भी तैयारी है। इन कदमों से अमेरिकी सरकार साबित करने में जुटी है कि वह अपनी मुश्किल खुद हल कर सकती है। भारत के लिए इस तरह अमेरिका द्वारा सिस्टम में डॉलर उड़ेलना फायदे की बात है क्योंकि हमारे यहां ब्याज दर ज्यादा है, इसलिए अमेरिका की पूंजी ज्यादा कमाई के चक्कर में भागी-भागी हमारे यहां चली आएगी।

अब निवेशकों के दिमाग में घरेलू मसलों पर लेकर छाई चिंताओं की बात। संसद का गतिरोघ जिससे तमाम महत्वपूर्ण विधेयक अटक गए हैं। राष्ट्रमंडल खेलों से लेकर आदर्श हाउसिंग सोसायटी, 2जी स्पेक्ट्रम व हाउसिंग लोन घोटाला। शेयर बाजार में भावों के साथ धांधली और सर्कुलर ट्रेडिंग। आईबी की रिपोर्ट जिसमें कई कंपनियों और ऑपरेटरों के खिलाफ जांच की बात कही गई है। इसके ऊपर से कच्चे तेल के बढ़ते दाम और मुद्रास्फीति। खनन कंपनियों से मुनाफे में 26 फीसदी हिस्सा लेने की पेशकश। फिर यह सवाल कि क्या अब शेयर बाजार मंदी के दौर के मुहाने पर है?

2जी स्पेक्ट्रम घोटाला बड़ा मसला बन चुका है। लेकिन इसमें जिस तरह बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के भी कार्यकाल को लपेटा जा रहा है, उसमें लगता है कि राजनीतिक सौदेबाजी का शिकार होकर यह मसला ठंडा पड़ जाएगा। वैसे भी इस घोटाले के शोर में कांग्रेस ने आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से लेकर कई वरिष्ठ नेताओं में शामिल होने का मामला दबा डाला। असल में एलआईसी हाउसिंग लोन घोटाला और आईबी रिपोर्ट का लीक होना सब बड़े राजनीतिक खेल का हिस्सा है। राष्ट्रमंडल खेलों से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का धन पूंजी बाजार में आया है। इस धन के आने की कड़ी हमेशा लुप्त ही रहेगी। इस बीच शेयर बाजार को मोहरा बनाकर सरकार ने सारा ध्यान इधर का उधर कर दिया। सोचने की बात है कि जिस शेयर बाजार में मात्र दो फीसदी भारतीय निवेश करते हैं, उसे इतना तूल क्यों दिया जा रहा है?

शेयर बाजार में मौजूदा भूचाल राजनीतिक वजहों से पैदा किया गया है और देख लीजिएगा कि संसद का गतिरोध खत्म होते ही सारे मसले शांत पड़ जाएंगे। वैसे भी आज सोमवार, 13 दिसंबर को संसद के शीत सत्र का आखिरी दिन है। इसके बाद बजट सत्र फरवरी के तीसरे हफ्ते में शुरू होगा। दिक्कत यह है कि शेयर बाजार से सीधे-सीधे जुड़े मसलों पर स्पष्टता नहीं बन पाई है। जैसे, संजय डांगी के सेबी के आदेश में कोई स्पष्टता नहीं है। कहीं से पता नहीं चलता कि किन एफआईआई के लिंक डांगी से रहे हैं। बाजार को यह भी नहीं लगता कि सेबी कभी ऐसे एफआईआई के नाम सामने लाएगी क्योंकि इससे देश में आ रही विदेशी पूंजी के प्रवाह पर गभीर असर पड़ सकता है।

आईबी की रिपोर्ट गोपनीय थी जिसे इधर-उधर किए बिना सेबी को सौंपा जाना था। लेकिन यह लीक हो गई। इसमें करीब 20 कंपनियों के नाम हैं जिनके शेयरों में केतन पारेख व कुछ एचएनआई निवेशकों ने मिलकर ऊंच-नीच की है। लेकिन इस रिपोर्ट में धन का आना-जाना नहीं पता लगाया गया है, जबकि 5000 करोड़ से 50,000 करोड़ से ज्यादा के बाजार पूंजीकरण वाली कंपनियों के शेयरों में भावों से छेड़छाड़ के लिए धन का स्रोत का पता लगाना निहायत जरूरी है। बिजनेस चैनलों ने इस रिपोर्ट का इस्तेमाल अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए कर लिया। तीन दिन तक टुकड़े-टुकड़े में कुछ बातें बताते रहे। इसका फायदा उठाकर मंदी फैलानेवाले ऑपरेटरों पर बाजार पर अपना शिकंजा कस लिया।

सेबी आईबी की रिपोर्ट पर अपनी खुद की जांच पूरी करने के बाद ही कोई कदम उठाएगी। इसलिए जाहिर-सी बात है कि रिपोर्ट को लीक करने और उसका इस्तेमाल बाजार को गिराने के लिए करने में कुछ निहित स्वार्थों का हाथ रहा है जिन्होंने तिल का ताड़ बनाकर माहौल का फायदा उठाया है। असल में होता यह है कि तेजी के माहौल में जो काम आप 200 करोड़ रुपए में भी नहीं कर सकते, उसे मंदी के माहौल में आप महज 10 करोड़ रुपए में अंजाम दे सकते हैं। यह शेयर बाजार का आम नियम है।

हमारा मानना है कि जब तमाम शेयर निचले पायदान पर आ गए हों, तब उनको खरीदने में समझदारी है। वैसे भी हमारी अर्थव्यवस्था के मूलभूत पहलू पहले से मजबूत हो गए हैं। लेकिन ध्यान रखें कि ऑपरेटरों द्वारा चलाए जा रहे कमजोर शेयरों की तरफ न भागें। नहीं तो घाटा उठाना पड़ता है। जैसे, सुजाना टावर्स को 60 रुपए से खींचकर 260 रुपए पर पहुंचा दिया गया तो तमाम निवेशक उसकी चकाचौंध में आ गए। तभी ऑपरेटरों ने उसे बेचकर मुनाफा बटोरना शुरू कर दिया और निवेशक बुरी तरह मारे गए। अभी यह शेयर निचले सर्किट ब्रेकर 144.40 रुपए पर पहुंच गया है। किसी शेयर के मूलभूत पहलू को देखकर ही निवेश करें। सुनी-सुनाई बातों पर निवेश करना कहीं से भी अच्छी बात नहीं है।

एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशकों) ने बीते हफ्ते अपनी होल्डिंग से शुद्ध 4700 करोड़ रुपए के शेयर निकाल डाले। लेकिन उनको लेकर भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि एक तो उनके पास जितना भी विदेशी धन होता है, उसका हिसाब-किताब 1 जनवरी से 31 दिसंबर का होता है, इसलिए उन्हें साल खत्म होने से पहले अपने निवेशकों की जेब तक फायदा पहुंचाना है। दूसरे, उनमें अगर कोई आशंका है तो उसे दूर करना भारत सरकार का काम है और वह यह काम बखूबी कर रही है।

हमे थोड़ी फिक्र एचएनआई निवेशकों और ऑपरटरों की है क्योंकि इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आप मानें या न मानें, जिस तरह भ्रष्टाचार देश की रग-रग में समा गया है, वैसे ही शेयर बाजार एचएनआई और ऑपरेटरों के जाल से जकड़ा हुआ है। यह भी सच है कि घोटाले होते हैं तो बाजार को धक्का लगता है। हर्षद मेहता और केतना पारेख का घोटाला बाजार को ऐसा धक्का पहुंचा चुका है। लेकिन घोटालों से बाजार कभी रुकता नहीं। जैसे, धरती कभी घूमना नहीं बंद करती।

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