उत्पादक श्रम  ही जोड़ता मूल्य व समृद्धि

देश में श्रम की भरमार है। हमारी 67.3% आबादी की उम्र 15 से 59 साल है, जबकि 26% आबादी 14 साल तक की है। हमारे यहां 7% से भी कम लोग 60 साल के ऊपर के हैं, जबकि अमेरिका में ऐसी आबादी 17%, यूरोप में 21% और जापान में 32% है। छह साल बाद 2030 में भारत में कामकाजी उम्र वालों की आबादी 68.9% होगी। तब 28.4 साल की मीडियन उम्र के साथ भारत दुनिया का सबसे युवा देश होगा और हमारी कामकाज़ी आबादी 104 करोड़ होगी। बच्चों व बूढ़ों की निर्भर आबादी 31% और बाकी 69% कमाने वाले। कितनी सुखद स्थिति है! लेकिन कमानेवाले अगर गांवों से लेकर कस्बों व शहरों तक निठल्ले बैठे चारपाई तोड़ने और गली-मोहल्लों में आवारागर्दी करने लग जाएं क्योंकि उनके पास कोई काम-धंधा नहीं है तो स्थिति बहुत दुखद हो जाती है। अभी स्थिति यह है कि पिछले छह साल में बेरोज़गार युवाओं में आत्महत्या की दर 33% बढ़ गई है और हर घंटे दो युवा अपनी जान ले रहे हैं। अनुत्पादक श्रम घर-परिवार में कैसे समृद्धि ला सकता है और देश की अर्थव्यवस्था में मूल्य जोड़ सकता है? ज़रूरी बात कि देश में उद्योग धंधे लगते चले जाएं। साथ ही उनमें काम करने लायक स्वस्थ, शिक्षित व कुशल श्रम उपलब्ध हो और सबको काम मिले। अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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