कबीर की उलटबांसियों पहले आध्यात्म्य की अबूझ पहेलियां लगती थीं। अब दुनिया का असली सच लगती हैं। जैसे, गतिशीलता ही स्थाई है और जिसे हम स्थाई समझते हैं वो तो बराबर गतिशील है।
2010-06-11
कबीर की उलटबांसियों पहले आध्यात्म्य की अबूझ पहेलियां लगती थीं। अब दुनिया का असली सच लगती हैं। जैसे, गतिशीलता ही स्थाई है और जिसे हम स्थाई समझते हैं वो तो बराबर गतिशील है।
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सही है जब कबीर समझ में आये तो अपनी नासमझी पर भी हंसी आयी.