खेल तो लंबा है नोएडा टोल ब्रिज का

अच्छे लोग, बुरे लोग। अच्छी कंपनियां, बुरी कंपनियां। अब अगर आप निवेश के लिए किसी ईश्वर भुवन होटल्स जैसी गुमनाम कंपनी को चुनते हैं तो सचमुच ईश्वर ही आपका मालिक है। कंपनी आपकी बचत लेकर गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाएगी। लेकिन क्या करें! हम तो फास्टफूड के आदी हो चुके हैं। सब कुछ पका-पकाया चाहिए। किसी ने बताया, टिप दी, खरीद लिया। डूब गए तो शेयर बाजार को लाख-लाख गालियां देने लगे। ये अच्छी बात नहीं है। न देश के लिए, न हमारे लिए। हमें निवेश के लिए खुद छान-बीन करने की आदत डालनी होगी। कोई भी दूसरा आपके लिए फैसले नहीं कर सकता।

आज एक विशेष कंपनी की चर्चा। नोएडा टोलब्रिज कंपनी लिमिटेड। इसका गठन 1996 में दिल्ली और नोएडा को यमुना नदी के ऊपर से जोड़ने के विशेष मकसद से एसपीवी (स्पेशल परपज वेहिकल) के रूप में किया गया, बूट के आधार पर। बीओओटी – बिल्ड, ओन, ऑपरेट एंड ट्रांसफर। दक्षिण दिल्ली व नोएडा के बीच आठ लेन का टोल ब्रिज वह साल 2001 में बनाकर चालू कर चुकी है। 2008 में उसने 11 लेन का मयूर विहार लिंक टोल प्लाजा भी शुरू कर दिया। सड़क बनाओ, पुल बनाओ, टोल वसूलो। एसपीवी है तो विशेष मकसद खत्म, कंपनी खत्म? फिर नोएडा टोल ब्रिज कंपनी चली क्यों जा रही है? आखिर इसका बिजनेस मॉडल क्या है?

किसी भी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी जैसा बिजनेस मॉडल है नोएडा टोल ब्रिज का। शुरुआती निवेश काफी ज्यादा रहा। अब इसके रखरखाव व चलाने की लागत काफी कम हो गई है। इसलिए टोल से जितनी भी कमाई होती है, उसका बड़ा हिस्सा लाभ में चला जाता है। अगर शुरुआती कमाई का अनुमान खरा नहीं उतरता तो दिक्कत होती क्योंकि लिया गया ऋण कंपनी को कुचल सकता है। नोएडा टोल ब्रिज कंपनी का आकलन और यथार्थ इस मायने में काफी शुभ-शुभ रहा है। मेट्रोरेल शुरू हो जाने के बावजूद उसके टोल ब्रिज पर हर दिन का औसत ट्रैफिक सवा लाख वाहनों का रहता है।

कंपनी के ऊपर 31 मार्च 2011 तक कुल बकाया ऋण 138.66 करोड़ रुपए का था। उसका ऋण-इक्विटी अनुपात इस समय मात्र 0.36:1 का है। कंपनी ने बीते वित्त वर्ष 2010-11 में 84.31 करोड़ रुपए की आय पर 37.49 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। इस साल सितंबर 2011 की तिमाही में उसकी आय तो 4.58 फीसदी ही बढ़कर 22.14 करोड़ रुपए पर पहुंची, लेकिन शुद्ध लाभ 16.27 फीसदी बढ़कर 8.22 करोड़ रुपए हो गया। ऐसा तब, जब उसने 6.19 करोड़ रुपए का ब्याज चुकाया है। अभी के सकल लाभ को देखते हुए कंपनी दो-ढाई साल में अपना बचा-खुचा कर्ज भी उतार फेंकेगी। तब उसका शुद्ध लाभ मार्जिन और ज्यादा हो जाएगा। कंपनी इधर स्टाफ का खर्च भी काफी घटा रही है। सितंबर 2010 की तिमाही में यह खर्च 1.47 करोड़ रुपए था। लेकिन सितंबर 2011 की तिमाही में वो इसे 97.92 लाख रुपए पर ले आई।

एक बात और नोट करने की है कि कंपनी को टोल से ही नहीं, विज्ञापन से भी आय होती है। दूसरे सरकार ने कंपनी की आय की भरपाई उसे करीब 99 एकड़ जमीन लीजहोल्ड पर दे रखी है जिसका मूल्य 300 करोड़ रुपए के आसपास आंका गया है। नोएडा टोल ब्रिज बनने पर कंपनी को लागत पर 20 फीसदी का रिटर्न सरकार की तरफ से सुनिश्चित किया गया था और उसे 30 सालों तक इससे टोल इकट्ठा करने का अधिकार मिला हुआ है। यह करार आगे भी बढ़ाया जा सकता है। इसलिए एसपीवी अभी 20 साल तो और चलेगा। फिलहाल काम खत्म, पैसा हजम वाला मामला नहीं है।

अंत में सबसे खास बात। जानकार मानते हैं कि कंपनी के शेयर का अंतनिर्हित मूल्य 50-55 रुपए है। लेकिन कल इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 532481) और एनएसई (कोड – NOIDATOLL) दोनों में ही 21.60 रुपए पर बंद हुआ है। यह 52 हफ्ते के अपने न्यूनतम स्तर 20.50 रुपए के काफी करीब है जो उसने 19 अगस्त 2011 को हासिल किया था। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 2.15 रुपए है और उसका शेयर अभी 10.05 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। शेयर की बुक वैल्यू उसके बाजार भाव से ज्यादा, 23.88 रुपए है। इस समय नोएडा टोल ब्रिज में निवेश का काफी आकर्षक मौका है।

कंपनी की 186.195 करोड़ रुपए की इक्विटी का 73.61 फीसदी हिस्सा पब्लिक के पास है। इसमें से 8.14 फीसदी शेयर एफआईआई और 11.35 फीसदी शेयर डीआईआई के पास हैं। उसकी प्रवर्तक इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग व फाइनेंस से जुड़ी कंपनी आईएल एंड एफएस है जिसके पास 26.37 फीसदी इक्विटी शेयर है। हा, इधर निवेशकों व ट्रेडरों का दिलचस्पी कंपनी में अचानक बढ़ती दिख रही है। कल बीएसई में इसके 6.43 लाख शेयरों में सौदे हुए जिसमें से 49.96 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। इसी तरह एनएसई में ट्रेड हुए 1.54 लाख शेयरों में से 49 फीसदी डिलीवरी के लिए थे।

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