खाने-पीने की चीजों के दामों में लगातार तेजी से परेशान प्रधानमंत्री मनमोहन सिहं ने महंगाई को थामने के उपायों पर विचार-विमर्श के लिए आज, मंगलवार को राजधानी दिल्ली में एक उच्चस्तरीय बैठक की। लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। इसलिए विचार-विमर्श का सिलसिला कल भी जारी रहेगा। सूत्रों के मुताबिक कोई नतीजा न निकलने की वजह कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार का अड़ियल रवैया रहा है। इसलिए संभव है कि सरकार अगले फेरबदल में पवार से कम से कम खाद्य मंत्रालय छीनने का फैसला कर ले। वैसे भी, पवार खुद खाद्य मंत्रालय छोड़ने की पेशकश कर चुके हैं।
इस बैठक में शरद पवार के अलावा वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, गृह मंत्री पी चिदंबरम और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिहं अहलूवालिया उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि प्याज, टमाटर, दूध, मीट, खाद्य तेल और कुछ अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के दाम बढने से थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित खाद्य मुद्रास्फीति 25 दिसंबर को बीते सप्ताह में उछलकर 18.32 फीसदी पर जा पहुंची है।
प्याज का खुदरा मूल्य दिसंबर में एक समय 80 रुपए तक पहुचने के बाद सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी 60 रुपए किलो के आसपास चल रहा है। रोजमर्रा की खाने पीने की वस्तुओं के ऊंचे दाम से सरकार में चिंता बढ गई है। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार को लगता है कि कहीं महंगाई का मुद्दा कोढ़ में खाज न बन जाए और विपक्ष के तेवर ज्यादा हमलावर हो जाएं। इसीलिए प्रधानमंत्री की तरफ से बैठक बुलाकर हालात पर काबू करने की कोशिश हो रही है।
महंगाई की खास मार प्याज व अन्य सब्जियों के दाम बढ़ने से लगी है। लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार ने कल ही कह दिया था कि सरकार इन मामले में ज्यादा कुछ नहीं कर सकती। उनका कहना था कि सब्जियों के भाव ज्यादा हैं और हमारा इस पर कोई वश नहीं है। यहां तक कि चीनी के दाम अधिक रहने के बावजूद पवार कह रहे हैं कि सरकार ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत 5 लाख टन चीनी निर्यात करने के फैसले पर कायम है। यह निर्यात 30 जनवरी के बाद किया जाना है।
सूत्रों के मुताबिक मंगलवार की बैठक में भी शरद पवार ने यही रवैया अपनाया जिसके चलते कोई आम राय नहीं बन पाई। इससे पहले वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के सुझाव के बाद प्याज के व्यापारियों पर डाले गए आयकर छापों का भी उल्टा नतीजा निकला है। व्यापारियों द्वारा सप्लाई रोक देने से दाम और बढ़ गए। प्याज पर आयात शुल्क खत्म करना भी निरर्थक रहा है। उधर पाकिस्तान भारत को प्याज भेजने के मूड में नहीं दिख रहा। महंगाई खाद्य पदार्थों की हैं, इसलिए इसका समाधान रिजर्व बैंक की तरफ से ब्याज दरें बढ़ाने से भी नहीं निकल सकता। ऐसे में सरकार के हाथ हर तरफ से बंधे दिखाई दे रहे हैं।
इस बीच विपक्ष ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर हमला तेज करते हुए कहा है कि वे देश के इतिहास की भ्रष्टतम सरकार की अगुआई कर रहे हैं। राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा, “लोग कहते हैं कि वे (प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह) व्यक्तिगत रूप से ईमानदार हैं। ये विचित्र ईमानदारी है कि वे 1947 के बाद से लेकर अब तक भारत में सबसे भ्रष्ट सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं।”