बैंकिंग उद्योग में ऐसा पहली बार हुआ है। आईडीबीआई बैंक ने चेक बाउंसिग के अलावा सेंविग्स और करंट एकाउंट से जुड़े सारे के सारे शुल्क खत्म कर दिए हैं। यह फैसला 1 सितंबर, बुधवार से लागू हो गया है। इसका मतलब यह होगा कि बैंक का कोई भी खाताधारी उससे डिमांड ड्राफ्ट बनवाएगा तो उसे एक पैसा भी शुल्क नहीं देना पड़ेगा। वह इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर भी मुफ्त में करवा सकता है। उस पर अपने खाते में न्यूनतम बैलेंस रखने की भी कोई बाध्यता नहीं होगी।
आईडीबीआई बैंक के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक आर एम मल्ला ने बुधवार को मुंबई में एक संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की। मल्ला ने दो महीने पहले ही बैंक के सीएमडी का पदभार संभाला है। इससे पहले योगेश अग्रवाल बैंक के सीएमडी थे, जो अब पीएफआरडीए (पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी) के चेयरमैन बन गए हैं।
श्री मल्ला ने कहा कि बचत व चालू (कासा) खातों से सारे शुल्क हटाने के फैसले का मकसद बैंक के मौजूदा और नए ग्राहकों से रिश्तों को मजबूत करना है। उनका कहना था कि बैंकिंग का यह सारा नया दर्शन इस सवाल से निकला है कि धन से ज्यादा मूल्यवान क्या है? और इसका उत्तर है – आप। बैंक के लिए हर ग्राहक की अहमियत है। उन्होंने कहा है कि आज तक बैंकिंग चार्जेज के बिना बैंकिंग करने का कदम किसी भी बैंक ने नहीं उठाया है।
वैसे, अगर भावना और आदर्श से हटकर देखें तो आईडीबीआई बैंक का यह ‘ऐतिहासिक कदम’ धन के सबसे सस्ते स्रोत कासा जमा को बढ़ाने की दुस्साहसी कोशिश है। बैंक ने कुल 21 तरह के शुल्क खत्म कर दिए हैं। इनमें मुख्य हैं – औसत बैलेंस, एकाउंट क्लोजर, एटीएम इंटरचेंज, इश्यूएंस, नए मास्टर व वीसा कार्ड की फीस, चेक सेवा शुल्क, चेक बुक शुल्क, डीडी शुल्क, ईसीएस शुल्क, आउटस्टेशन चेक कलेक्शन, पीवो शुल्क, एकाउंट स्टेटमेंट शुल्क, स्टॉप पेमेंट शुल्क, एमआईसीआर चेक शुल्क और डीडी कैंसल व जारी करने के शुल्क। ध्यान दें, इसमें चेक बाउंसिग का शुल्क शामिल नहीं है।
इसकी घोषणा करते हुए आईडीबीआई बैंक के प्रमुख ने कहा, “हमारे लिए आप यानी ग्राहक आपके धन से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। यह महज शब्द नहीं हैं। यह एक ऐसा अनुभव है जो हर ग्राहक तक पहुंचेगा। यह एक ऐसा भरोसा है जिससे अधिक से अधिक लोग हम पर विश्वास करेंगे। यह वो रक्त है जो आईडीबीआई बैंक की रगों में दौड़ता है। हां, बैंक का वास्ता धन से होता है। लेकिन हम मानते हैं कि वक्त आ गया है जब हम धन से जुड़े भी रहें और फिर भी धन से ऊपर हों।”
असल में इस बड़े-बड़े शब्दों के पीछे का यथार्थ यह है कि आईडीबीआई बैंक की कासा जमा हमारे बैंकिंग उद्योग के औसत से कम है। उद्योग का औसत 30 फीसदी से ज्यादा है, जबकि आईडीबीआई बैंक की कासा जमा कुल जमाराशि के 14 फीसदी के आसपास है। बैंक का लक्ष्य अगले 12 महीनों में अपने रिटेल खातों की संख्या को दोगुना कर एक करोड़ तक पहुंचा देना है। बैंक कासा खातों पर शुल्क खत्म करने से होनेवाले नुकसान की भरपाई ऋण सलाह और बड़े कॉरपोरेट ऋणों के सिंडीकेशन जैसी सेवाओं से करेगा, जिनमें अच्छी-खासी फीस मिलती है।
इस ऐतिहासिक कदम से आईडीबीआई बैंक को बहुत फ़ायदा होगा और निश्चित ही कुछ बड़े बैंक जल्दी ही प्रतियोगिता में दिखेंगे।
बैंक द्वारा आम लोगो के हित में फैसला लिया ! सभी बैंको को इस और अपने कदम बढाने चाहिए !
VERY GOOD FOR CUSTOMERS.