रिलायंस इंडस्ट्रीज धीरूभाई के जमाने से ही शेयर बाजार की उस्ताद कंपनी है। शेयर बाजार के ऐसे-ऐसे खेल उसकी अंगुलियों के इशारों पर चलते हैं जिनकी हवा बड़े-बड़ों तक को नहीं लग पाती। इधर उसके शेयर 31 अगस्त को 915 तक जाने के बाद फिर से उठना शुरू हुए हैं और अब 1042.90 रुपए तक चले गए हैं। कैश सेगमेंट में बीएसई में रोजाना का औसत कारोबार 10-11 लाख शेयरों का रहता है तो एनएसई में 70-72 लाख शेयरों का। 31 अगस्त को तो एनएसई में उसके 1.06 करोड़ शेयरों का रिकॉर्ड कारोबार हुआ था, जबकि बीएसई में 26 लाख शेयरों का। इसमें से एनएसई में 59 लाख शेयर और बीएसई में 10 लाख शेयर डिलीवरी के लिए थे। इस तरह डिलीवरी का अनुपात 52.27 फीसदी का रहा है। अब भी डिलीवरी की औसत मात्रा 55 फीसदी से ऊपर चल रही है।
कौन खरीद रहा है रिलायंस इंडस्ट्रीज के ये शेयर, नहीं पता। बीएसई की वेबसाइट बताती है कि पिछले दो सालों में इसमें कोई बल्क डील नहीं हुई है। लेकिन यह भी तथ्य है कि 11 अगस्त को नित्यप्रिया कमर्शियल्स, क्षितिज कमर्शियल्स, करदम कमर्शियल्स, आदिसेष एंटरप्राइसेज व आवरण टेक्सटाइल्स जैसी समूह से जुड़ी कंपनियों ने इसके 50 करोड़ से ज्यादा शेयर बेचे हैं। किसने खरीदे हैं, नहीं पता। बताते हैं कि रिलायंस समूह की हजारों बेनामी निवेश कंपनियां हैं जो बाजार में बराबर सक्रिय रहती हैं। लेकिन इसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं हैं।
यहां तक कि कहा जाता है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की जो 17-18 फीसदी हिस्सेदारी है, उसमें से लगभग 16 फीसदी तो खुद रिलायंस समूह की है जो उसने एफआईआई के जरिए लगा रखी है। हालांकि इसका कोई साक्ष्य नहीं है। लेकिन अगर आप गौर करें तो पिछले पांच सालों में रिलायंस इंडस्ट्रीज में एफआईआई की हिस्सेदारी 16 फीसदी से नीचे कभी नहीं गई है।
जून 2005 में यह 22.40 फीसदी थी। सितंबर 2005 में 22.93 फीसदी, दिसंबर 2005 में 22.20 फीसदी और मार्च 2006 में 21.35 फीसदी हो गई। जून 2006 में 20.60 फीसदी, सितंबर 2006 में 21.12 फीसदी, दिसंबर 2006 में 20.68 फीसदी और मार्च 2007 में 20.22 फीसदी। जून 2007 में 20.85 फीसदी, सितंबर 2007 में 21.38 फीसदी, दिसंबर 2007 में 19.46 फीसदी और मार्च 2008 में 18.51 फीसदी। इसके बाद जून 2008 में यह 17.81 फीसदी, सितंबर 2008 में 17.70 फीसदी, दिसंबर 2008 में 16.12 फीसदी और मार्च 2009 में 16.56 फीसदी पर पहुंच गई। जून 2009 में 16.98 फीसदी, सितंबर 2009 में 17.07 फीसदी, दिसंबर 2009 में 17.47 फीसदी और मार्च 2010 में 18.27 फीसदी के स्तर थी। नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक जून 2010 की तिमाही के अंत में रिलायंस इडस्ट्रीज में एफआईआई होल्डिंग 17.86 फीसदी है।
रिलायंस ने नवंबर 2009 में एक पर एक बोनस शेयर देने की घोषणा की थी। उसके बाद एफआईआई होल्डिंग इसमें बढ़ती गई है। ध्यान दें कि दिसंबर 2007 में यह 19.46 फीसदी पर थी तो मार्च 2009 तक गिरकर 16.56 फीसदी पर आ गई। मार्च 2009 वह वक्त था जब लेहमान संकट के बाद बाजार में मंदडियों ने मजबूत पकड़ बना रखी थी। लेकिन फिर धीरे-धीरे कंपनी में एफआईआई का हिस्सा बढ़कर मार्च 2010 तक 18.27 फीसदी पर आ गया।
मार्च 2010 के बाद से यह शेयर फिर मंदड़ियों का शिकार हुआ क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल से जुड़ी आस्तियों के मूल्य गिर रहे थे और वैश्विक निवेशकों के लिए रिलायंस से सस्ते शेयर इस श्रेणी में उपलब्ध थे। जून 2010 तक कंपनी में एफआईआई होल्डिंग गिरकर 17.86 फीसदी पर आ गई। अगर हम मार्च 2009 को मानक मानें तो रिलायंस में एफआईआई की होल्डिंग में अधिकतम गिरावट 1.3 फीसदी तक हो सकती थी। जून 2010 के बाद से ही इस स्टॉक में जिस तरह लगातार बिकवाली चली है, उसमें माना जा सकता है कि अगस्त का अंत आते-आते उसमें ज्यादातर बिकवाली हो चुकी है। बता दें कि अब तक दिसंबर 2008 में रिलायंस में एफआईआई होल्डिंग का न्यूनतम स्तर 16.12 फीसदी का रहा है। इससे पहले जून 2003 में यब 16.31 फीसदी तक गया था।
माना जा रहा है कि रिलायंस में 16.12 फीसदी से कम एफआईआई होल्डिंग कभी जा ही नहीं सकती क्योंकि यह तो उसकी अपनी होल्डिंग है। इसके बाद एफआईआई के नाम पर इसमें निवेश बढ़ाया जाता है जिसके एक स्तर तक पहुंचने के बाद फिर मुनाफावसूली की जाती है और इस तरह 16-19-22 का खेल बार-बार दोहराया जाता है।
रिलायंस इंडस्ट्रीज में एफआईआई की ताजा होल्डिंग का आधिकारिक आंकड़ा 15-20 अक्टूबर तक पता चलेगा। लेकिन बाजार के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो अगस्त अंत यह घटकर 16.50 फीसदी के आसपास आ गया था, जिसे अब बढ़ाया जा रहा है और आनेवाले दिनों में 18 फीसदी तक लाया जा सकता है। मतलब साफ है, 31 अगस्त से रिलांयस में शुरू हुई तेजी का क्रम अभी चलता रहेगा और इसका शेयर निकट भविष्य में 1300 रुपए तक जा सकता है। हालांकि आरबीएस एशिया की निदेशक पारुल जे सैनी की मानें तो रिलांयस का अनुमानित लाभ बाजार की अपेक्षा से 15-25 फीसदी कम ही रहेगा। इसलिए इसका शेयर इस साल पहले की तरह आगे भी अंडर-परफॉर्म करता रहेगा।