अगर रिजर्व बैंक की पूर्व डिप्टी गवर्नर ऊषा थोराट की अध्यक्षता में बने कार्यदल की सिफारिशों का मान लिया गया तो गैर बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (एनबीएफसी) को पूंजी बाजार (प्राइमरी + शेयर बाजार) में दिए गए ऋण के लिए 150 फीसदी और कमर्शियल रीयल एस्टेट को दिए ऋण के लिए 125 फीसदी प्रावधान करना होगा। अभी इन दोनों ही ऋणों पर इन्हें 100 फीसदी प्रावधान करना पड़ता है।
रिजर्व बैंक ने सोमवार को इस कार्यदल की रिपोर्ट बहस के लिए जारी कर दी। इस पर सितंबर अंत तक प्रतिक्रियाएं भेजी जा सकती हैं। बता दें कि 1997 के बाद से ही देश में गैर-बैंकिंग कंपनियां काफी तेजी से बढ़ी हैं। इस समय बैंकों ने कुल जितना ऋण दे रखा है, उसका 11 फीसदी एनबीएफसी का है। कार्यदल के सुझाव के मुताबिक एनबीएफसी के लिए टियर-1 का न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अनुपात 12 फीसदी होना चाहिए, जबकि इस समय यह 7.5 फीसदी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शेयर ब्रोकरों और मर्चेंट बैंकरों को दिए गए कर्ज पर एनबीएफसी को भी बैंकों जितना प्रावधान करना चाहिए। समिति ने कहा है, “बैंकों पर लागू होने वाले अकाउंटिंग नियम एनबीएफसी के लिए भी होने चाहिए।” ऐसी सभी एनबीएफसी को, जिनकी आस्तियां 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा हैं, वे चाहे सूचीबद्ध हों या न हों, अपने निदेशक बोर्ड का गठन सेबी के सूचीबद्धता करार की धारा 49 के तहत करना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि रिजर्व बैंक को नई एनबीएफसी के पंजीकरण के लिए न्यूनतम 50 करोड़ रुपए की आस्तियों पर जोर देना चाहिए। इससे कम आस्तियों वाली एनबीएफसी का पंजीकरण रद्द किया जाना चाहिए या फिर उन्हें दो साल के बाद नया पंजीकरण प्रमाणपत्र लेने को कहा जाना चाहिए।
दक्षिण भारत की प्रमुख एनबीएफसी मणप्पुरम फाइनेंस के प्रबंध निदेशक का कहना है कि समिति की सिफारिशें दूरगामी रूप से बहुत अच्छी रहेंगी क्योंकि इससे पूरे बैंकिंग सेक्टर पर पड़नेवाले जोखिम को संभालने में मदद मिलेगी। लेकिन छोटी अवधि में कंपनियों के सामने जरूर दिक्कत आएगी क्योंकि उनके लिए शर्त के अनुरूप पूंजी बढ़ाना महंगा पड़ेगा। बजाज फाइनेंस के सीईओ राजीव जैन के मुताबिक, सकारात्मक बात यह है कि एनबीएफसी को किसी एक व्यवसाय तक बांधा नहीं गया है।