बड़े काम की है नेशनल पेरॉक्साइड

नेशनल पेरॉक्साइड 1954 में बनी नुस्ली वाडिया परिवार की कंपनी है। नुस्ली के बेटे नेस वाडिया इसके चेयरमैन हैं। कंपनी कल्याण (महाराष्ट्र) की फैक्टरी में तीन रसायन बनाती है – हाइड्रोजन पेरॉक्साइड, सोडियम परबोरेट व पैरासेटिक एसिड बनाती है। लेकिन इसमें प्रमुख है हाइड्रोडन पेरॉक्साइड जिसमें देश का 40 फीसदी बाजार उसके हाथ में है। कंसोलिडेट आधार पर कंपनी वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 101.23 रुपए और स्टैंड-एलोन आधार पर 100.65 रुपए है। शेयर केवल बीएसई (कोड – 500298) में लिस्टेड है और कल 521.45 रुपए पर बंद हुआ है। वैसे, यह भी अजीब संयोग है कि साल भर पहले 27 जुलाई 2010 को 280 रुपए तक चला गया था जो उसका 52 हफ्ते का न्यूनतम स्तर है। काश, हमने इसे साल भर पहले पकड़ लिया होता तो 86 फीसदी से ज्यादा के रिटर्न पर फूले नहीं समा रहे होते!

खैर, इस समय  भी आप खुद देख सकते हैं कि यह शेयर केवल 5.18 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इसकी बुक वैल्यू बाजार भाव की लगभग आधी 223.93 रुपए है। यह शेयर इसी साल 28 अप्रैल को 688 रुपए तक गया है जो 52 हफ्ते का उसका शिखर है। इस बढ़त का प्रत्यक्ष कारण यह था कि कंपनी ने एक दिन पहले ही 27 अप्रैल को अपने सालाना नतीजे घोषित किए थे, जिसके मुताबिक 2010-11 में उसका शुद्ध लाभ 257.04 फीसदी बढ़कर 16.20 करोड़ रुपए से सीधे 57.84 करोड़ रुपए पर पहुंच गया था। इस दौरान बिक्री भी 48.99 फीसदी बढ़कर 121.91 करोड़ रुपए से 181.63 करोड़ रुपए हो गई।

कंपनी का ईपीएस इतना ज्यादा होने की वजह यह है कि उसकी इक्विटी मात्र 5.75 करोड़ रुपए है जो दस रुपए अंकित मूल्य के 57.5 लाख शेयरों में विभाजित है। 57.84 करोड़ को 57.5 लाख से भाग देंगे तो 100.6 का ईपीएस निकलेगा ही। कम पूंजी आधार के कारण वाडिया समूह की यह कंपनी स्मॉल कैप में गिनी जाती है। उसका मौजूदा बाजार पूंजीकरण 300 करोड़ रुपए है। लेकिन चूंकि प्रवर्तकों के पास कंपनी की 70.09 फीसदी इक्विटी है। इसलिए इसमें फ्री-फ्लोट बाजार पूंजीकरण का करीब 30 फीसदी यानी 90 करोड़ रुपए ही है।

यही वजह है कि कंपनी के शेयरों में ज्यादा ट्रेडिंग नहीं होती। जैसे, कल इसके कुल 2678 शेयरों में ट्रेडिंग हुई जिसमें से 87.51 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। लेकिन इससे म्यूचुअल फंड जैसे उन निवेशकों को ज्यादा परेशानी होगी जिनको एकमुश्त लाखों शेयर खरीदने-बेचने होते हैं। हमको-आपको तो 100-200 शेयर ही खरीदने बेचने होंगे। इसलिए इस कम तरलता या लिक्विडिटी से बहुत फर्क नहीं पड़ता। कंपनी अच्छी है और मजबूत धरातल पर खड़ी है, इसमें कोई दो राय नहीं है। उसके मुख्य उत्पाद हाइड्रोडन पेरॉक्साइड का इस्तेमाल कान से लेकर पानी की सफाई व ब्लीचिंग वगैरह में होता है। दवा, टेक्सटाइल व कगज व लुग्दी उद्योग से इसकी मांग निकलती है, जो बराबर बढ़ रही है।

उसने बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए हाल ही में हाइड्रोजन पेरॉक्साइड की सालाना उत्पादन क्षमता 65,000 टन से बढ़ाकर 84,000 टन कर दी है। इसके लिए उसने अपना कल्याण का संयंत्र 11 अप्रैल के बाद छह हफ्ते के लिए बंद रखा था। लेकिन क्षमता विस्तार का काम अब पूरा हो गया है और नई क्षमता पर परीक्षण उत्पादन पिछले महीने जून अंत से शुरू हो चुका है। असल में कंपनी की योजना अगले पांच सालों में अपनी क्षमता इसी तरह बढ़ाते-बढ़ाते 1.50 लाख टन सालाना कर देने की है। इससे यकीनन कंपनी की वित्तीय उपलब्धियां बढ़ जाएंगी।

दूसरी तरफ, कंपनी ने लागत घटाने का भी काम किया है। दिसंबर 2009 तक कंपनी के पास हाइड्रोजन पेरॉक्साइड के मुख्य कच्चे माल – प्राकृतिक गैस की सप्लाई का पक्का स्रोत नहीं था और वह सारा माल हाजिर बाजार से खरीदती थी। लेकिन अब उसके बाद उसने सरकारी कंपनी गैल इंडिया के साथ प्राकृतिक गैस की सप्लाई का दूरगामी करार कर लिया है। इससे कंपनी की लागत में काफी कमी आई है। साथ ही बाजार से माल खरीदने का झंझट भी खत्म हो गया है।

कंपनी पर ऋण का बोझ यूं समझिए कि है ही नहीं। उसका ऋण/इक्विटी अनुपात 0.04 फीसदी है। कंपनी की नेटवर्थ (इक्विटी + रिजर्व = 5.75 करोड़ + 122.99 करोड़) 128.74 करोड़ रुपए है, जबकि ऋण की रकम मात्र 8.85 करोड़ रुपए है। कंपनी खुलकर लाभांश भी देती रही है। जैसे इस साल उसने दस रुपए के शेयर पर 12 रुपए यानी 120 फीसदी का लाभांश दिया है। इससे पहले 2009 और 2010 में वह दस पर दस यानी 100 फीसदी लाभांश दे चुकी है।

आप कहेंगे कि जब 70 फीसदी इक्विटी प्रवर्तकों के पास हो तो लाभांश का ज्यादा फायदा तो उन्हें ही मिलेगा। लेकिन 30 फीसदी आम निवेशकों को भी तो यह लाभ मिल रहा है। कंपनी की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कंपनियों में टाटा केमिकल्स, गुजरात अल्कलीज, हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स और अमीन्स एंड प्लास्टिसाइजर्स शामिल हैं। लेकिन घरेलू बाजार में करीब 40 फीसदी हिस्से के साथ उसी का दबदबा और साख है।

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