अमेरिका द्वारा भारत से होनेवाले आयात पर जवाबी शुल्क लगा देना कोई ऐसा-वैसा नहीं, बल्कि राष्ट्रहित से जुड़ा अहम हमला है। लेकिन जिस दिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जवाबी शुल्क का ऐलान कर रहे थे, उसी दिन देश की संसद को वक्फ संशोधन बिल पर उलझा देने से जगजाहिर हो गया है कि भाजपा और मोदी सरकार के लिए राष्ट्रहित की अहमियत ज्यादा है या राजनीतिक स्वार्थ की? इस सरकार ने पहले तो बजट में अमेरिकी माल व सेवाओं पर टैक्स घटाकर ट्रम्प को खुश करने का जतन किया। फिर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रम्प की भूरि-भूरि प्रशंसा की और हांका कि जिस तरह ट्रम्प के लिए अमेरिका फर्स्ट है, उसी तरह उनके लिए भारत फर्स्ट है। लेकिन भारतीय हितों के लिए विपक्ष समेत समूचे देश को जिस तरह साथ लिया जाना चाहिए, वैसा कुछ नहीं किया क्योंकि तब वे अकेले जिद्दी ट्रम्प से लल्लो-चप्पो नहीं कर पाते। उनको अमेरिका के खिलाफ कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया और तमाम मित्र यूरोपीय देशों के साथ चीन को भी मिलाकर मुकाबला करना चाहिए था, लेकिन वे तो अपने ‘मित्र’ को खुश करने में लगे रहे। इस बीच उनकी सरकार फर्जी वादों और धोखे पर चलती जा रही है। लेकिन आखिर झूठ का तिलिस्म कब तक चल पाएगा? अब शुक्रवार का अभ्यास…
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