चुनाव का संदेश, नहीं समझे तो बगावत

वित्त वर्ष 2021-22 और 2022-23 के बीच के जिन दो सालों में निफ्टी रीयल एस्टेट सूचकांक 200% बढ़ा है, उसी दौरान कंस्टक्शन क्षेत्र के मजदूरों की औसत मजदूरी घट गई। इसमें भी महिला मजदूरों की हालत ज्यादा खराब रही। इस क्षेत्र में लगभग 80% अकुशल मजदूर काम करते हैं, जिनके लिए राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी निर्धारित है। लेकिन मशहूर संस्था सीईआईसी के डेटा के मुताबिक 15 से 20 राज्यों में यह न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलती। जाहिर है कि ऊपर की समृद्धि नीचे तक रिसकर नहीं पहुंच रही। यही नहीं, पिछले दस साल में कंस्ट्रक्शन मजदूर की वास्तविक मजदूरी 20 राज्यों में से नौ में घटी है, जबकि चार राज्यों में बेहद कम बढ़ी है। गांव-गिरांव से लेकर शहरों, कस्बों व मोहल्लों में जाकर कोई भी देख सकता है कि लोगबाग बेरोज़गारी, घटती कमाई और बढ़ती महंगाई से त्रस्त हैं। 18वीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय अवाम ने यही संदेश सत्ता तक पहुंचाने की कोशिश की है। सरकार ने अगर इन मसलों को हल नहीं किया तो बिना किसी राजनीतिक नेतृत्व के भी बगावत भड़क सकती है। लोग इस बात से भी त्रस्त हैं कि तमाम तरह के टैक्स लगाकर गरीबों तक से भरपूर वसूली की जा रही है। लेकिन यह सारा धन राज्य से लेकर जिला स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रहा है और आमजन सूखता जा रहा है। अब शुक्रवार का अभ्यास…

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