शेयर बाज़ार ट्रेडिंग के हर दिन, हर पल बराबर बोलता है, बात करता है। क्या आप उसे सुनते हैं या सुन पाते हैं? अगर नहीं तो दोषी आप हैं, कोई दूसरा नहीं। हां, बाज़ार साफ-साफ खुलकर नहीं बोलता। लेकिन वो हिन्ट ज़रूर देता है, संकेतों की भाषा में बात करता है। फिर भी वो इतने निशान छोड़ जाता है कि आप उसके पीछे-पीछे चलकर उसकी थाह ले सकते हैं, सफलता की मंज़िल तक पहुंच सकते हैं। जिस तरह चिड़ियां चहचहाकर अपने संदेश देती हैं, हम इंसान आपस में बात करते हैं, यहां तक कि हर जानवर की अपनी भाषा-बोली होती है, उसी तरह बाज़ार भी बात करता है। बाज़ार संख्याओं की भाषा में बात करता है। यही उसका माध्यम है। इसलिए संख्याओं की भाषा में आपकी दिलचस्पी ही नहीं, उसमें आपको पारंगत होना पड़ेगा। गणित और सांख्यिकी का आपको भरपूर ज्ञान हो तो आप संख्याओं की थाह लगाकर सच तक पहुंच सकते हैं। बाज़ार की भाषा, उसके संकेतों को अपने दम पर समझने का यही एक तरीका है। दूसरे इस भाषा की व्याख्या अपने-अपने तरीके से करते हैं और आपको चरका पढ़ा सकते हैं, आपको अपने स्वार्थ की चक्की का दाना बनाकर पीस सकते हैं। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप खुद बाज़ार की संख्याओं में छिपे संकेतों को, उसकी भाषा को समझना सीख जाएं और सीखते चले जाएं…
समझें टर्नओवर का संकेत: पहला संकेत बाज़ार हर दिन टर्नओवर या वोल्यूम के रूप में देता है। अगर बाज़ार बढ़ा है और टर्नओवर भी ज्यादा है तो साफ मतलब है कि खरीदार उत्साहित हैं और बाज़ार में दिल व जेब खोलकर जमकर शिरकत कर रहे हैं। दूसरी तरफ टर्नओवर उस दिन भी बढ़ा है, जिस दिन बाज़ार गिरा है तो इसका मतलब यह कि बिकवाली का दबाव बढ़ रहा है। बाज़ार का मतलब निफ्टी-50 और सेंसेक्स-30 का स्तर है और अधिकांश ट्रेडिंग एनएसई में ही हो रही है तो हम वहां के कैश सेगमेंट के टर्नओवर को आधार बना सकते हैं जिसका डेटा वेबसाइट के पहले ही पेज़ पर दिख जाता है। कम वोल्यूम पर बाज़ार के बढ़ने और ज्यादा वोल्यूम पर बाज़ार के गिरने का मतलब अलग होता है।
ओपन इंटरेस्ट भी बोले बहुत कुछ: कैश सेगमेंट के टर्नओवर के साथ ही डेरिवेटिव सेगमेंट को ओपन इंटरेस्ट भी काफी मायने रखता है। हमें निफ्टी फ्यूचर्स के ओपन इंटरेस्ट पर खास ध्यान देना चाहिए। ओपन इंटरेस्ट का मतलब है डेरिवेटिव सेगमेंट के वो सौदे, जिन्हें अभी तक काटा नहीं गया है और जो ओपन हैं। हर बार जब बाज़ार गिर रहा हो और ओपन इंटरेस्ट बढ़ रहा हो और जब बाज़ार बढ़ रहा हो तो ओपन इंटरेस्ट या तो बहुत कम बढ़ रहा हो या घट रहा हो तो इसका क्या मतलब है? यह हमें बाज़ार के इनसाइडर्स या अंदरखाने की खबर रखनेवालों के रुख का संकेत देता है। इनसाइडर्स तब तक बाज़ार में सक्रिय रहेंगे, जब तक मनी मार्केट बना रहेगा। इनका सीधा रिश्ता क़ॉल मनी मार्केट से होता है। बैंकों व वित्तीय संस्थाओं से जुड़े ये वे लोग हैं तो धन की हर हरकत, हर धड़कन से वाकिफ रहते हैं। अच्छी बात यह है कि आज सारा बाजार डिजिटल हो गया है। सब कुछ कंप्यूटराइज्ड है। वित्तीय बाज़ार का हर सौदा – ओपन, हाई, लो, क्लोज़, सब कुछ ट्रेडिंग टर्मिनल के कोट्स की विंडो में आ जाता है। बाज़ार के इनसाइडर अपने हर कदम के पर्याप्त निशान छोड़ जाते हैं। आप इनका फॉरेंसिक ऑडिट करो या पोस्ट मोर्टम करो, यह आपके हुनर और अभ्यास पर निर्भर करता है।
जानें बेसिस का बेसिक फंडा: एक अन्य संख्या जिसके माध्यम से बाज़ार बोलता है, वों है बेसिस (Basis)। इसका डेटा सीधे-सीधे नहीं मिलता, बल्कि हमें इसे निकालना या कहें तो गिनना पड़ता है। बेसिस का मतलब है किसी स्टॉक या सूचकांक के स्पॉट और फ्यूचर्स भाव का अंतर। अमूमन फ्यूचर्स का भाव स्पॉट से अधिक ही होता है क्योंकि धन का समय मूल्य या उसकी लागत इसमें जुड़ जाती है। लेकिन कभी-कभी हम देखते हैं कि निफ्टी और बैंक निफ्टी के फ्यूचर्स के भाव उनके स्पॉट भाव से कम होते हैं। इसका मतलब यह कि बेसिस ऋणात्मक या उल्टा चल रहा है। पहले के दौर में इसे ऊंधा बदला कहा जाता था। अगर निफ्टी बढ़ रहा है तो बेसिस ऋणात्मक या उल्टा क्यों? इसका मतलब यही है कि बाज़ार के इनसाइडरों को पता है कि आगे गिरावट आनेवाली है और हर तेज़ी पर वे जमकर मुनाफावसूली या बिकवाली कर रहे हैं।
कहां कैसी हैं बेचैनियां: बाज़ार की दशा-दिशा जानने के लिए अलग-अलग श्रेणियों या सेक्टरों के स्टॉक्स की हरकतों को देखना चाहिए। देखें कि इनमें टॉप के बढ़ने और गिरनेवाले स्टॉक्स कौन-से हैं। टॉप के 10-20 स्टॉक्स पर नज़र रख सकते हैं। आपको देखना होगा कि इनमें ओपन इंटरेस्ट बढ़ रहा है या घट रहा है। देखें कि किन स्टॉक्स में वोल्यूम बढ़ रहा है। अमूमन इन श्रेणियों में निफ्टी और बैंक निफ्टी सूचकांक में शामिल स्टॉक्स भी रहते हैं। लेकिन इनकी ज्यादा उछल-कूद सामान्य नहीं मानी जा सकती। न ही यह बाज़ार के लिए स्वस्थ लक्षण है। जब भी ऐसा तो इसका मतलब है कि बाज़ार में नर्वसनेस बढ़ी हुई है और तेज़ी का दौर ज्यादा नहीं चल सकता। वैसे, इसका संकेत इंडिया वीआईएक्स और डेरिवेटिव सेगमेंट में कुल ग्रॉस मार्केट वाइड पोजिशन लिमिट (MWPL) का डेटा भी दे देता है। बाज़ार के गिरने का अंदेशा देखकर हम ट्रेडिंग से कुछ समय के लिए पीछे हट सकते हैं।
असल ट्रेडिंग की तैयारी: बाज़ार की दशा-दिशा की मोटा-मोटी जानकारी के बाद हम अगले दिन की ट्रेडिंग की तैयारी करते हैं। टर्नओवर, बेसिस और तमाम श्रेणियों के स्टॉक्स की उछल-कूद पर नज़र डालने से हमारी अपनी भावनाएं सम हो जाती हैं और हम ट्रेडिंग का ज्यादा विवेकपूर्ण निर्णय ले सकते हैं। अब आपको तय करना होता है कि हमें किस दिशा और किन स्टॉक्स में ट्रेड करना है। ट्रेडिंग के पहले की तैयारी बेहद अहम है क्योंकि अगर हमें नहीं पता कि किस दिशा और किन स्टॉक्स में ट्रेड करना है और हम अंधेरे में तीर चलाने जा रहे हैं तो समझ लीजिए कि लड़ने से पहले ही आज जंग हार चुके हैं। बाज़ार खुलने करीब एक घंटे पहले प्री-ट्रेडिंग तैयारी में आपको देखता होता है कि कल अमेरिका के शेयर बाज़ार, डाउ जोन्स और S&P-500 सूचकांक का क्या हाल रहा है, आज ऑस्ट्रेलिया का बाज़ार अपने समय के दोपहर तक कैसा है और ठीक दोपहर से पहले एशिया में जापान व दक्षिण कोरिया का बाज़ार का क्या है। साथ ही भारतीय समय से सुबह 8.15 बजे SGX निफ्टी / GIFT निफ्टी क्या संकेत दे रहा है। इसके बाद ट्रेडिंग में उतरना ठीक रहता है।
ट्रेडिंग सत्र शुरू होने के बाद: जो स्विंग, मोमेंटम या पोजिशनल ट्रेडिंग करते हैं, उनके लिए चिंता व तनाव की कोई बात नहीं। वे दिन में कभी भी माहौल अनुकूल होने पर सौदों में एंट्री कर सकते हैं। लेकिन जिन ट्रेडरों को दिन के दिन में कमाना है, उन्हें काफी तैयारी करनी पड़ती है। इतनी कि ट्रेडिंग सत्र शुरू होने के बाद इधर-उधर ध्यान भटकाने की फुरसत नहीं मिलती। दुनिया इधर से उधर न हो जाए, तब तक आप अपनी ट्रेडिंग डेस्क से कहीं नहीं जाते। निगाहें कंप्यूटर स्क्रीन पर टिकाए रखनी होती हैं। ऐसे ट्रेडरों को माइक्रो ट्रेन्ड ट्रेडर या माइक्रो स्काल्प ट्रेडर कहा जाता है। इनके लिए किसी भी पोजिशन को अधिकतम होल्ड करने की अवधि 59 मिनट 59 सेकंड होती है। इसी दौरान उन्हें सौदे काटकर निकल लेना होता है। जितनी जल्दी आप निकल लें, घाटा खाने की गुंजाइश उतनी कम होती है।
ध्यान रखना होता है कि कहीं कोई विपरीत खबर मुनाफे के अवसर पर पानी न फेर दे। घाटे के सौदे को मुनाफे के अवसर में बदलने की तेज़ी आपको सीखनी पड़ती है। सौदे को अंजाम तक पहुंचाना बेहद महत्वपूर्ण है। फिर भी यह प्री-ट्रेडिंग तैयारी से कम महत्व रखता है। प्री-ट्रेडिंग तैयारी बहुत ढीली-ढाली या लापरवाह किस्म की है तब आपको अच्छी से अच्छी सूरत में 15-20-30 पैसे पर एंट्री व एक्जिट मारना पड़ता है। इसे प्रोफेशनल ट्रेडर इनग्रेस और इग्रेस (ingress और egress) कहते हैं। हालांकि इसे संभाला सकता है। लेकिन अगर आपकी दिशा ही गलत है तो सौदे में निश्चित रूप से बंटाधार हो जाता है।
ट्रेडिंग के बाद की अहम समीक्षा: किसी दिन का ट्रेडिंग सत्र खत्म होते ही अगले दिन की तैयारी या कहें तो अगली यात्रा की शुरुआत हो जाती है। असल में ट्रेड के बाद का सम्यक व संतुलित विश्लेषण ही घाटा खानेवाले ट्रेडर से मुनाफा कमानेवाले ट्रेडर को अलग करता है। ट्रेडिंग सत्र खत्म होने के बाद कम से कम दो घंटे इस पर मनन करने की ज़रूरत है कि आप सौदे में क्यों घुसे और फिर क्या-क्या हुआ, कहां आपसे चूक हुई या कहां आप और बेहतर कर सकते थे? घाटा या मुनाफा खाना तो धंधे का हिस्सा है। अगर इससे हम ट्रेडिंग की अपनी कला व हुनर को बेहतर बना सकें तो यही हमारी उपलब्धि है। हर दिन की सीख अगले दिन ट्रेडिंग की हमारी धार को पैना कर देती है। यह अभ्यास किसी कुशल ट्रेडर को शनिवार व रविवार को भी जारी रखना चाहिए जिसमें वो पूरे बीते सप्ताह की समीक्षा करता है।
मोटे तौर पर कहें तो शेयर बाज़ार में सफल ट्रेडिंग के लिए बाज़ार बंद होने के बाद डेढ़-दो घंटे और सुबह बाज़ार खुलने से पहले डेढ़-दो घंटे रिसर्च करना ज़रूरी है। वैसे, ‘अर्थकाम’ अपने नियमित ‘ट्रेडिंग बुद्ध’ कॉलम में ऐसी रिसर्च में लगभग इतना-ही समय लगाकर आपका काम थोड़ा आसान कर देता है। लेकिन ऐसा संभव नहीं कि आप कोई मेहनत ही न करें, बस यह कॉलम पढ़कर ट्रेडिंग से कमाई कर लें। ट्रेडिंग का अपना सिस्टम व अनुशासन आपको हर हाल में बनाना और विकसित करना ही पड़ेगा। नहीं तो हमेशा दूसरों या हालात या अपनी किस्मत को दोष देते रह जाएंगे और सफलता दूर से मुंह चिढ़ाती हुई भाग जाएगी।
