मोदी सरकार ने 2023-24 की आर्थिक समीक्षा में कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था को 2030 तक हर साल कृषि क्षेत्र से बाहर 78.5 लाख रोज़गार पैदा करने पड़ेगे। साथ ही 35 लाख लोगों को हर साल कृषि से बाहर निकालकर गैर-कृषि क्षेत्र में रोज़गार देने का इंतज़ाम करना होगा। कुल मिलाकर 113.50 लाख नए रोज़गार हर साल। लेकिन 2024-25 की ताज़ा आर्थिक समीक्षा बताती है कि सरकार कृषि क्षेत्र से निकालकर लोगों को मैन्यूफैक्चरिंग व सेवा क्षेत्र में नहीं ले जा सकी। इसके विपरीत कृषि पर निर्भऱ रोज़गार का अनुपात बढ़ गया। यही नहीं, चिंता की बात यह है कि देश में उपलब्ध कुल रोज़गार में उद्योग व सेवा क्षेत्र का हिस्सा घटता जा रहा है। विकास की यह कैसी उल्टी रीत है? अगर यही रीत चलती रही तो भारत 2047 तक कतई विकसित देश नहीं बन सकता। 28 फरवरी 2025 को जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक हमारे जीडीपी में कृषि का 13.18% और मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान 15.68% है। पर रोजगार में कृषि का हिस्सा 46.1% और मैन्यूफैक्चरिंग का मात्र 11.4% पर अटका पड़ा है। जहां मूल्य-वर्धन सबसे कम, वहां सबसे ज्यादा रोज़गार और जहां मूल्य-वर्धन सबसे ज्यादा, वहां सबसे कम रोज़गार। अब मंगलवार की दृष्टि…
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