इंसान की कोई भी रचना तब तक निष्प्राण रहती है जब तक उसे व्यापक समाज स्वीकार नहीं करता। लेकिन स्वीकृत होते ही वह रचनाकार की मंशा से अलग एक स्वतंत्र सत्ता हासिल कर लेती है।
2011-09-16
इंसान की कोई भी रचना तब तक निष्प्राण रहती है जब तक उसे व्यापक समाज स्वीकार नहीं करता। लेकिन स्वीकृत होते ही वह रचनाकार की मंशा से अलग एक स्वतंत्र सत्ता हासिल कर लेती है।
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