हम में हर कोई शेयरों में निवेश फायदा कमाने के लिए करता है, घाटा उठाने के लिए नहीं। और, फायदा तब होता है जब शेयरों के भाव बढ़ते हैं। शेयरों के भाव तब बढते हैं जब किसी भी दूसरी चीज की तरह उसे खरीदनेवाले बेचनेवालों से ज्यादा होते हैं। अगर बेचनेवाले खरीदनेवालों से ज्यादा हो गए तो शेयर नई तलहटी पकड़ता जाता है। यह अलग बात है कि शॉर्ट सेलिंग करनेवाले शेयरों के भाव गिरने से ही फायदा कमाते हैं। लेकिन टी ग्रुप में कोई शॉर्ट सेल या इंट्रा-डे ट्रेडिंग नहीं चलती। इसलिए वहां खरीद-बिक्री सचमुच की होती है, डिलीवरी के लिए होती है। हालांकि वहां भी ऑपरेटरों या निहित स्वार्थ वालों का खेल चल सकता है।
एक और मोटी-सी बात है कि हमारा शेयर बाजार समाज से अलथ-थलग किसी द्वीप पर नहीं बसा है। इसलिए अगर समाज में बिना कोई जैक लगे अच्छे लोगों की सही कद्र नहीं होती तो शेयर बाजार में बिना जैक वाली कंपनियों की कद्र कैसे हो सकती है? जरूरी नहीं है कि कोई कंपनी अच्छी हो तो उसके शेयर भी टनाटन चल रहे हों। लेकिन जिस तरह हम मान कर चलते हैं कि अंत में जीत हमेशा सच्चाई की होती है, वैसे ही बाजार में फंडामेंटल स्तर पर मजबूत स्टॉक भी अंततः सही मंजिल हासिल ही कर लेता है।
इतने आम ‘ज्ञान’ के बाद खास चर्चा आज जय श्री टी एंड इडस्ट्रीज (बीएसई – 509725, एनएसई – JAYSREETEA) की। जय श्री टी पूरी दुनिया में चाय की तीसरी बड़ी उत्पादक है। बी के बिड़ला समूह की कंपनी है। लेकिन इस साल इसकी तीसरी तिमाही अच्छी नहीं रही है। पिछले सोमवार को घोषित नतीजों के मुताबिक दिसंबर 2010 की तिमाही में कंपनी ने 126.9 करोड़ रुपए की शुद्ध बिक्री पर 19.79 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है, जबकि साल भर पहले दिसंबर 2009 की तिमाही में उसने 141.1 करोड़ रुपए की शुद्ध बिक्री पर 33.22 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। इस तरह साल भर पहले की तुलना में उसकी बिक्री में 10.06 फीसदी और शुद्ध लाभ में 40.43 फीसदी की कमी आई है। यही नहीं, सितंबर 2010 की तिमाही की तुलना में भी उसकी बिक्री 8.28 फीसदी और शुद्ध लाभ 55.27 फीसदी घटा है। सितंबर 2010 की तिमाही में उसकी शुद्ध बिक्री 138.34 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 44.24 करोड़ रुपए रहा था।
आईसीसीआई सिक्यूरिटीज की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार जय श्री टी की दिसंबर तिमाही खराब होने की वजह यह है कि जहां साल भर पहले उसे प्रति किलो चाय के 130 रुपए मिले थे, वहीं इस बार 122 रुपए ही मिले हैं। दूसरे, चाय श्रमिकों की मजदूरी जनवरी 2010 से ही प्रति किलो 3.5 रुपए बढ़ा दी गई है। इससे दिसंबर 2010 की तिमाही में कंपनी की श्रम लागत बिक्री की 25 फीसदी रही, जबकि साल भर पहले यह 19.3 फीसदी थी। तीसरे, कंपनी ने रवांडा में अधिग्रहण के लिए 100 करोड़ रुपए का कर्ज लिया है। इसके चलते उसे बीती तिमाही में 4.98 करोड़ रुपए का ब्याज देना पड़ा, जबकि साल भर ब्याज अदायगी 1.67 करोड़ रुपए थी। लेकिन जिस कंपनी की तिमाही कर्मचारी लागत 31.69 करोड़ रुपए हो, उसके लिए 4.98 करोड़ रुपए का ब्याज कोई बड़ा बोझ नहीं है।
खराब नतीजों के आभास से कंपनी का 5 रुपए अंकित मूल्य का शेयर 11 फरवरी 2011 को 144.20 रुपए पर 52 हफ्तों की नई तलहटी बना गया। अब भी इसके आसपास 149.75 रुपए पर चल रहा है, जबकि उसके शेयर की बुक वैल्यू ही 131.39 रुपए है। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर शुद्ध लाभ) 26.09 रुपए है। इस तरह उसका शेयर मात्र 5.74 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। चाय उद्योग की अन्य कंपनियों में मैकलियोड रसेल का शेयर 10.28 के पी/ई पर ट्रेड हो रहा है, जबकि हरिसन मलयालम घाटे में है तो उसके पी/ई की बात ही नहीं हो सकती।
आईसीआईसीआई सिक्यूटीज का आकलन है कि जय श्री टी का ईपीएस अगले वित्त वर्ष 2011-12 में 30.7 रुपए रहेगा। इस तरह अभी का मरा-गिरा 5.74 का भी पी/ई अनुपात लें तो उसका शेयर साल भर बाद 176 रुपए तक जा सकता है और 10 का पी/ई लेकर चलें तो शेयर का भाव 300 रुपए के ऊपर होना चाहिए। दोनों ही स्थितियों में कितना रिटर्न मिल सकता है, इसकी गणना आप अपने मोबाइल के कैलकुलेटर से खुद कर सकते हैं।
असल में कंपनी का आगे का भविष्य संभवतः अच्छा ही रहेगा। देश में चाय का उत्पादन 2011 में 9.66 लाख टन के ही वर्तमान स्तर पर रहने की उम्मीद है। दूसरे केन्या और श्रीलंका में चाय का उत्पादन घटने की उम्मीद है। इसलिए इस साल चाय की कीमतें बढ़ने के पक्के आसार हैं। जाहिर है इसका फायदा जय श्री टी जैसी कंपनियों को मिलेगा। साथ ही अनुमान है कि जय श्री टी चालू वित्त वर्ष 2010-11 में 24,066 टन चाय की बिक्री करेगी, जबकि बीते वित्त वर्ष 2009-10 में उसकी कुल बिक्री 22,000 टन रही थी।
कंपनी की इक्विटी 11.17 करोड़ रुपए है। इसका 40.79 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास और बाकी 59.21 फीसदी हिस्सा पब्लिक के पास है। पब्लिक के हिस्से के 9.52 फीसदी शेयर एफआईआई और 4.36 फीसदी शेयर डीआईआई के पास हैं। कंपनी 2006 से लगातार ठीक-ठाक लाभांश देती रही है।