अपने शेयर बाज़ार में बहुत सारी विसंगतियां हैं, सब कुछ आधुनिक ही नहीं, अत्याधुनिक हो जाने के बावजूद। साल में ट्रेड होने वाले कॉन्ट्रैक्ट की संख्या को आधार बनाएं तो हमारा एनएसई लगातार छह सालों से दुनिया का सबसे बड़ा डेरिवेटिव एक्सचेंज बना हुआ है। लेकिन इंडेक्स ऑप्शंस के वोल्यूम की गणना डेरिवेटिव सेगमेंट की पूरी ट्रेडिंग की गलत तस्वीर पेश करती है। वैसे, इसे डेल्टा आधारित बनाकर दुरुस्त की कोशिशें जारी हैं। फिर, अपने बाजार में प्रवर्तकों के साथ मिलकर ऑपरेटरों का खेल अब भी जारी है। यहीं नहीं, ऑफशोर फर्मों का खेल अलग से एफपीआई के रूट के हवाले काम करता है। इन सारी विसंगतियों के पीछे मूलतः देश की गंदी राजनीति का गंदा खेल है। लेकिन यह सब कुछ दुरुस्त भी हो जाए, तब भी शेयर बाज़ार का मूल स्वभाव नहीं बदल सकता कि वो हमेशा आज और अभी की देखकर चलता है। तात्कालिक लालच और भय का संतुलन यहां भावों को तय करता है। इनके आधार पर अल्पकालिक ट्रेड तो किया जा सकता है, लम्बा निवेश नहीं। लम्बा निवेश जिस दूरदर्शिता की मांग करता है, वो शेयर बाज़ार में नहीं होती। इसलिए हमें लम्बे निवेश के लिए हमेशा भावों के परे जाकर देखना होता है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…
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