मोदी सरकार ने 11 साल पूरे होने पर ब़ड़े-बड़े सीरियल विज्ञापन निकाले हैं। इनमें देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को चार चांद लगा देने का दावा किया गया है। 66 लाख किलोमीटर से ज्यादा की सड़कें, 1.46 लाख किलोमीटर हाईवे, 111 राष्ट्रीय जलमार्ग, 25 शहरों में 1000 किलोमाटर से ज्यादा का मेट्रो नेटवर्क, हवाई अड्डों की संख्या 162 के पार, 1.50 करोड़ लोगों ने सस्ती विमान सेवाओं का लाभ उठाया। लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर के इस तामझाम की क्वालिटी कैसी और क्या है, इसे पिछले हफ्ते गुरुवार को अहमदाबाद में हुए कई दशकों के सबसे भयावह विमान हादसे ने स्पष्ट कर दिया है। आए-दिन पुलों के टूटने और सड़कों के धंसने की घटनाएं भी बराबर इसकी गवाही देती रहती हैं। फिर सवाल उठता है कि आखिर ये सारा इंफ्रास्ट्रक्चर आखिर किसकी सेवा के लिए खड़ा किया गया? ध्यान देने की बात यह है कि 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के समय से ही विदेशी निवेशक भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर को उन्नत करने की मांग करते रहे हैं। यह मांग 2004 में मनमोहन सरकार बनने के बाद जोर पकड़ती गई। 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने उसी सिलसिले को आगे बढ़ाया है। लेकिन अंततः हुआ क्या? सारे राग-आलाप के बावजूद बीते वित्त वर्ष 2024-25 में देश में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 96% घट गया। आखिर क्यों? अब मंगलवार की दृष्टि…
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