भारत ने अमेरिका के आव्रजन नियमों के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (डबल्यूटीओ) में शिकायत दर्ज कराई है। उसका कहना है कि अमेरिका ने अपने यहां काम करने के वीज़ा की लागत जिस कदर बढ़ाई है, वह बहुत ज्यादा और सरासर गलत है। यह भारतीय आईटी कंपनियों के साथ किया जा रहा भेदभाव है।
डब्ल्यूटीओ में भारत की यह शिकायत अभी दो पक्षों के बीच ‘विचार-विमर्श’ के स्तर पर है। यह वो स्तर है जहां पर इसे न सुलझाने पर मामला पूरी तरह कानूनी लड़ाई में तब्दील हो जाएगा। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा, “भारत ने यह मसला विचार-विमर्श के स्तर पर उठाया है और आशा है कि इसे सौहार्दपूर्वक सुलझा लिया जाएगा।” अधिकारी ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अपनी पहचान जाहिर न करने का आग्रह किया।
अधिकारी ने यह तो नहीं बताया कि भारत ने डब्ल्यूटीओ के पास यह शिकायत कब दर्ज कराई है। लेकिन इतना जरूर कहा कि वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने पिछले महीने 26 मार्च को भारत यात्रा पर आए अमेरिकी वाणिज्य मंत्री जॉन ब्रॉयसन के सामने वीज़ा का मुद्दा उठाया था। पिछले महीने डब्ल्यूटीओ से भारत के खिलाफ कुछ ऐसी ही शिकायत अमेरिका ने भी की है। अमेरिका का कहना है कि भारत अपने पोल्ट्री मीट व अंडे के बाजार को नहीं खोल रहा। उसने बर्ड फ्लू को रोकने के नाम पर अमेरिका से इन चीजों के आयात पर बैन लगा रखा है जो संजीदा विज्ञान पर आधारित नहीं है।
फिलहाल दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में आए इस उलझाव पर दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने कोई तात्कालिक टिप्पणी देने से मना कर दिया। बता दें कि भारत में 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के बाद दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते काफी सुखद रहे हैं। लेकिन हाल के सालों में दोनों ने एक-दूसरे पर व्यापार व निवेश की राह में अनुचित बाधा डालने के आरोप लगाए हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था को अमेरिकी कंपनियों का काम बाहर से कर देने का काफी फायदा मिला है। आईटी क्षेत्र की सॉफ्टवेयर निर्यातक कंपनियों के साथ ही बीपीओ क्षेत्र अमेरिकी काम की बदौलत तेजी से फलता-फूलता रहा है। लेकिन इस तरह की आउटसोर्सिंग अमेरिका में लंबे समय से राजनीतिक मसला बनी हुई है। इसे अमेरिका में रोजगार सृजन की रुकावट माना जा रहा है। वहां राष्ट्रपति चुनावों की सरगर्मियों बढ़ने के साथ इस मुद्दे ने फिर तूल पकड़ लिया है।
राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बाहर चली गई नौकरियों को देश के भीतर लाने का वादा किया है। बीते शुक्रवार को आए आंकड़ों से पता चला है कि जहां अर्थशास्त्रियों को पिछले महीने 2.03 लाख नई नौकरियां बनने की उम्मीद थी, वहीं वास्तव में 1.20 लाख नौकरियां ही बन पाई हैं। इससे भी अमेरिका में भारतीय आईटी कंपनियों के खिलाफ गुस्सा पनप रहा है।
भारत की शिकायत साल 2010 में बने अमेरिका के उस कानून से है जिसके तहत कुशल कामगारों के लिए वीज़ा की फीस लगभग दोगुनी, 4500 डॉलर (2.25 लाख रुपए) प्रति आवेदक कर दी गई है। इस विधेयक को न्यूयॉर्क के एक डेमोक्रेट सीनेटर चार्ल्स शूमर ने पेश किया था। उस वक्त शूमर ने कहा था कि इस विधेयक का मकसद उन मुठ्ठी भर कंपनियों पर अंकुश लगाना है जो बाहर से कामगारों को मंगाने के लिए अमेरिकी कानून का दुरुपयोग कर रही हैं। लेकिन अब इसका निशाना भारत की आईटी कंपनियां बन चुकी हैं।
प्रमुख आईटी कंपनी टेक महिंद्रा के सीईओ विनीत मायर का कहना है, “मैं समझता हूं कि भारत सरकार इसे व्यापार में बाधा मानकर सही कर रही है।” लेकिन उनका यह भी कहना था कि भारतीय उद्योग को उम्मीद नहीं है कि अमेरिका वीज़ा की फीस घटाएगा। भारतीय कंपनियां इसके असर को अपनी सेवाओं की लागत बढ़ाकर पूरा कर सकती हैं।