दक्षिण भारत की बदनाम कंपनी पिरामिड साइमीरा को खत्म करने का सिलसिला आखिरी मुकाम पर पहुंचने लगा है। मद्रास हाईकोर्ट की तरफ से नियुक्त परिसमापक (लिक्विडेटर) ने 14 मई की तारीख मुकर्रर की है। तब तक कंपनी को कर्ज देनेवालों को अपने दावों का प्रमाण पेश कर देना होगा। उन्हें इस बाबत एक हलफनामा परिसमापक के पास जमा कराना होगा।
चेन्नई में परिसमापक के कार्यालय की तरफ से कहा गया है कि वहां निर्धारित फॉर्मैट में ऋण उगाही के दावे स्वीकार किए जाएंगे। कार्यालय ने उन ऋणदाताओं को अपने दावों की जांच की प्रक्रिया में शामिल होने का निर्देश भी दिया है जो पहले ही उसके पास प्रमाण जमा करा चुके हैं।
बता दें कि मद्रास हाईकोर्ट ने सितंबर 2010 में पिरामिड साइमीरा को खत्म करने के लिए सरकारी परिसमापक नियुक्त कर दिया था। इसके दो महीने बाद पूंजी नियामक संस्था, सेबी ने कंपनी के प्रवर्तक पी एस सामीनाथन पर शेयर बाजार में किसी भी तरह भाग लेने पर दस साल के लिए और उनकी पत्नी उमा सामीनाथन पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया। सेबी ने पी एस सामीनाथन को निर्देश दिया था कि वे एक्सचेंज के किसी सक्षम मूल्यांकक द्वारा निकाले गए मूल्य पर कंपनी के शेयरों को खरीदने का ओपन ऑफर लाएं ताकि उसे डीलिस्ट किया जा सके।
सेबी ने बीएसई को भी निर्देश दिया था कि वह पिरामिड साइमीरा के शेयरों का मूल्यांकन कराने के लिए उसे अनिवार्य रूप से डीलिस्ट कर दे। मालूम हो कि कंपनी अपने खातों में हेराफेरी कर आय और लाभ को बढ़ाकर दिखाया था। कंपनी ने प्रवर्तकों को बिना कोई धन लिए प्रवर्तकों को प्रेफरेंशियल शेयर भी जारी किए थे। यही नहीं, प्रवर्तकों ने अपने शेयरों को चढ़ाने के लिए सेबी के फर्जी पत्र का इस्तेमाल किया था।
फिलहाल पिरामिड साइमीरा में लंबे समय से ट्रेडिंग सस्पेंड है। लेकिन वह अभी तक डीलिस्ट नहीं हुई है। उसके शेयरधारकों की कुल संख्या 35,448 है। इनमें से 33,208 यानी 93.68 फीसदी एक लाख रुपए से कम लगानेवाले छोटे निवेशक हैं जिनके पास कंपनी की कुल 40.22 फीसदी इक्विटी है। दस रुपए के शेयर का आखिरी भाव 5.29 रुपए रहा है।
कंपनी के डीलिस्ट होने की सूरत में ही उसके शेयरधारकों को कुछ मिल सकता है। नहीं तो सारा कर्जादाताओं का बकाया चुकाने के बाद अगर कुछ बचा, तभी शेयरधारकों को कुछ मिल जाएगा। लेकिन कंपनी जिस तरह अपनी नेटवर्थ तक खा चुकी है, उसमें शेयरधारकों को कुछ भी मिलने की गुंजाइश नहीं है। असल में इक्विटी शेयर किसी भी कंपनी की जोखिम पूंजी का हिस्सा हैं। इसलिए माना जाता है कि निवेशक अपने धन के डूबने तक का जोखिम उठाकर प्रवर्तकों का साथ दे रहा है।