अपने यहां खेती के बाद सबसे ज्यादा रोज़गार व्यापार में मिला हुआ है। गांव-गिरांव में तो अब भी बिजनेस का मतलब व्यापार समझा जाता है। बहुत हुआ तो ईंट-भट्ठा लगा लिया। मैन्यूफैक्चरिंग लोगों में जेहन में इससे ज्यादा पैठ नहीं बना पाई है। यकीनन, शहरों से सटे इलाकों और कस्बों में करोड़ों छोटी-छोटी इकाइयां लग गई हैं जो भांति-भांति की औद्योगिक खपत वाली चीजें बनाती हैं। लेकिन खेती से भागते आम लोगों में प्रभावी सोच व्यापार की है। वहां से निकले युवा कंस्ट्रक्शन में मजदूरी करते हैं। नहीं तो इलेक्ट्रीशियन प्लम्बर या बढ़ई का काम पकड़ लेते हैं। ज्यादातर लोग सब्ज़ी से लेकर चाट-पकौड़ी बेचने का धंधा कर लेते हैं। ये सभी थोक में खरीदते और रिटेल में बेचते हैं। इस तरह के व्यापार से अपने परिवार का भरण-पोषण कर लेते हैं। शेयरों की ट्रेडिंग भी इसी तरह की जाए तो परिवार चलाया जा सकता है। अब सोमवार का व्योम…
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