कॉरपोरेट क्षेत्र की दिग्गज हस्तियों, शेयर बाज़ार के उस्तादों और जमकर कमानेवाले एचएनआई के साथ उच्च-मध्यवर्ग के बहुतेरे लोगों को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार तीसरे कार्यकाल में ही भारत को विकसित देश बना सकती है। लेकिन सवाल उठता है कि विकसित देश बनने का पैमाना क्या होगा? जीडीपी का तेज़ विकास, टैक्स संग्रह का जमकर बढ़ना, शेयर बाज़ार का उछाल, कॉरपोरेट क्षेत्र के मुनाफे का बढ़ना, देशी-विदेशी पूंजी निवेश का प्रवाह या कुछ और? कोई इस तथ्य पर गौर करने को तैयार नहीं कि हमारी अर्थव्यवस्था में कॉरपोरेट क्षेत्र और उससे जुड़े शेयर बाज़ार का योगदान 12-13% तक सीमित है। इसमें सबसे बड़ा 40-45% का योगदान सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग (एमएसएमई) क्षेत्र का है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण यकीकन देशी-विदेशी कॉरपोरेट क्षेत्र की नुमाइंदगी करती है। वे सीधे प्रधानमंत्री के निर्देशों पर ही काम करती हैं। लेकिन एमएसएमई क्षेत्र की अगुआई कौन कर रहा है? प्रधानमंत्री से लेकर वित्त मत्री की बातों और बजट में इन लघु उद्यमों की चर्चा जरूर होती है। लेकिन इन्हें कितनी तवज्जो जा जाती है, इसका प्रमाण है कि पहले यह मंत्रालय नारायण राणे जैसे भ्रष्ट नेता के पास था, जबकि इस बार 79 साल के जीतनराम मांझी के पास जिनको उद्योग-धंधों की कोई समझ नहीं। ऐसे में कैसे बढ़ेगा एमएसएमई क्षेत्र और कैसे व कितनी बढ़ेगी देश में समृद्धि? अब बुधवार की बुद्धि…
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