हिंदुस्थान नेशनल ग्लास एंड इंडस्ट्रीज (एचएनजी) शराब से लेकर खाने-पीने की चीजों व दवाओं तक के लिए कांच की बोतलें बनाती हैं। 1946 में बनी कंपनी है। कोलकाता के नजदीक रिशरा में पहला संयंत्र लगाया था। अब उसके संयंत्र बहादुरगढ़, ऋषिकेश, नीमराना, नासिक और पुडुचेरी में हैं। घरेलू बाजार में कभी 65 फीसदी हिस्सेदारी हुआ करती थी। लेकिन नई कंपनियों के आने और क्षमता बढ़ाने से यह हिस्सा घटकर 55 फीसदी पर आ गया है। भारत के अलावा दुनिया के करीब 23 देशों को माल भेजती है। हालांकि कुल बिक्री का 95 फीसदी देश से आता है और मात्र 5 फीसदी विदेश से।
कंपनी अब इस समीकरण को बदलने में जुट गई है। वह अगले दो-तीन महीने के भीतर विदेश में दवाओं की पैकिंग में लगी कोई कंपनी खरीदने की जुगत में है। खबरों के मुताबिक इसके लिए उसने रॉथ्सचाइल्ड कंसल्टिंग और प्राइसवाटर कूपर्स को काम पर लगाया है। कंपनी के प्रबंध निदेशक मुकुल सोमानी के मुताबिक अधिग्रहण का मकसद दवा उद्योग की पैकिंग में अपना दखल बढ़ाना और नए विदेशी ग्राहकों को पकड़ना है। कंपनी इस सौदे पर 200 से 400 करोड़ रुपए खर्च करने को तैयार है।
इसके लिए धन का इंतजाम कंपनी क्यूआईपी (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट) के जरिए अपने ट्रेजरी स्टॉक्स संस्थागत निवेशकों को बेचकर करेगी। ट्रेजरी स्टॉक्स ऐसे शेयर हैं जो कंपनी ने किसी न किसी वजह से जारी तो कर दिए होते हैं, लेकिन वे उसके ही खाते में पड़े होते हैं। इन्हें प्रवर्तकों के हिस्से में गिना जाता है। कंपनी की इक्विटी अभी 17.47 करोड़ रुपए है जो 2 रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में बंटी है। इसका 30.02 फीसदी हिस्सा पब्लिक और 69.98 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है।
इसमें से ट्रेजरी स्टॉक्स 16.76 फीसदी हैं। करीब साल भर पहले जून 2010 में ही कंपनी ने अपने ट्रेजरी स्टॉक्स का एक हिस्सा अमेरिका की प्राइवेट इक्विटी फर्म सेक्वोइया कैपिटल को 127 करोड़ रुपए में बेचा था। उसने संभवः आइरनवुड इनवेस्टमेंट होल्डिंग्स के नाम से कंपनी में 7.27 फीसदी हिस्सेदारी ले रखी है। पब्लिक के हिस्से में कंपनी के बड़े शेयरधारकों में एक और नाम है दिलीप एस दामले का, जिनके पास उसके 16.76 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या मात्र 5811 है जिनमें एक लाख रुपए से कम के निवेश वाले छोटे निवेशकों की संख्या 5436 है।
कंपनी ने वित्त वर्ष 2009-10 में 1359.90 करोड़ रुपए की बिक्री पर 155.20 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। अभी दिसंबर 2010 की तिमाही में उसने 399.64 करोड़ की बिक्री पर 31.38 करोड़ का शुद्ध लाभ हासिल किया है। दिसंबर 2009 की तिमाही की तुलना में जहां बिक्री में 13.84 फीसदी का इजाफा हुआ है, वहीं शुद्ध लाभ 5.08 फीसदी घट गया है। लाभ के घटने की मुख्य वजह कच्चे माल और बिजली व ईंधन का खर्च बढ़ जाना है।
कंपनी ने अपने ये तिमाही नतीजे 7 फरवरी को घोषित किए थे। उसके बाद करीब दो महीने तक कमोबेश स्थिर रहने के बाद अब उसके शेयरों (बीएसई कोड – 515145, एनएसई कोड – HINDNATGLS) में गति आ रही है। कल करीब 4 फीसदी बढ़त हासिल करने के बाद वह 225 रुपए के आसपास है। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीने का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 13.1 रुपए है। बीएसई के बंद भाव 224.20 रुपए पर शेयर का पी/ई अनुपात 17.11 निकलता है। कंपनी के इतिहास-भूगोल और भावी संभावनाओं को देखते हुए इस स्तर पर दूरगामी नजरिए से निवेश किया जा सकता है। इसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 308 रुपए का है, जो इसमें इसी साल 14 जनवरी 2011 को हासिल किया था।
कंपनी लगागार लाभांश देती रही है। दर के लिहाज से वह ज्यादा भी रहा है। लेकिन 2 रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर 1.50 रुपए लाभांश मिले, तब भी वह 75 फीसदी होने के बावजूद 200 रुपए के बाजार भाव पर एक फीसदी भी नहीं बनता। हां, बराबर लाभांश देने से कंपनी की नीयत और मजबूती का पता जरूर चलता है।