चोट एसबीआई पर, मार एडीएजी पर

शेयर बाजार की हालत तो अभी ऐसी ही लगती है जैसे वहां कोई तेजड़िया बचा ही न हो। कल और आज सुबह तक पूरी दुनिया के बाजारों की हालत बुरी रही। लेकिन भारत में हालत दुरुस्त थी और निफ्टी में कल के निचले स्तर के आसपास 4820 समर्थन मिल रहा था। बहुत से इंट्रा-डे ट्रेडर बढ़त के अंदेशे में लांग हो गए क्योंकि उनके टेक्निकल संकेतक बाजार के 4930 तक जाने का इशारा कर रहे थे।

यकीनन बाजार बढ़ रहा था और आज 4930 तक चला भी जाता। लेकिन तभी मूडीज ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को डाउनग्रेड कर दिया, यह कहते हुए कि बैंक की 12 फीसदी आस्तियां (दिए गए ऋण) फंस सकती हैं। हालांकि यह महज एक अनुमान है और यह तब आया है जब एसबीआई का शेयर पहले ही 3500 से गिरकर 1800 रुपए पर आ चुका है। एसबीआई की किसी भी आस्ति में अब कोई सेंध नहीं लगनी है। खुद एसबीआई के चेयरमैन प्रतीप चौधरी आधिकारिक तौर पर कह चुके हैं कि इस तिमाही में बैंक का मुनाफा 2500 करोड़ रुपए रहेगा।

खैर, किसी स्टॉक को डाउनग्रेड किया जाना कोई बड़ी बात नहीं है। असल सवाल यह है कि जब यूरोप व अमेरिका की हालत खराब चल रही है, तब क्या इन देशों की किसी रेटिंग एजेंसी के कुछ कहने का कोई तुक बनता है? हमें इस मसले से निपटने का काम भारत सरकार पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि एसबीआई की मालिक अब भी सरकार ही है। इस बीच फ्रांस और बेल्जियम डेक्सिया बैंक के उद्धार के लिए आगे आ गए हैं क्योंकि उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है। यूरोपीय बैंकों का उद्धार यूरोप का देश ही कर सकता है, एशिया के देश नहीं।

बाजार के बारे में बहुत ज्यादा लिखने का मतलब नहीं है क्योंकि अधिकांश खिलाड़ी, निवेशक व ट्रेडर मन ही मन 4300 तक जाने की बात स्वीकार कर चुके हैं और बदतर स्थिति में 3700 तक जाने की तैयारी भी कर चुके हैं। इसलिए तेजी की कोई भी बात उनके कानों में नहीं जानेवाली। बाजार इस समय तीन समुदायों में बंट चुका है। एक है ट्रेडर जो हर समय बेचने पर उतारू है। दूसरा रिटेल निवेशक जो अपने पास जो भी है, उसे लेकर रो रहा है और हर पल भगवान की तरफ देख रहा है। इसलिए उसके द्वारा नई खरीद करने का सवाल ही नहीं उठता। तीसरा है लंबे समय का निवेशक जो ज्यादा दाम तक देने को तैयार है, लेकिन स्पष्टता की बाट जोह रहा है।

इस साल अगस्त में हमने 8000 करोड़ रुपए की बिकवाली देखी। सितंबर में यह 2000 करोड़ रुपए ही रही है। अभी चल रहे अक्टूबर माह की तुलना लोग लेहमान संकट के दौर से कर रहे हैं जब अक्टूबर 2008 में बाजार से 24,000 करोड़ रुपए निकले थे। इस बिकवाली की वजह ईटीएफ में हुए नुकसान और विदेशी फंडों व म्यूचुअल फंड स्कीमों में चल रहे विमोचन को बताया जा रहा है।

अनिल अंबानी का एडीए समूह बाजार का पंचिंग पैड बन गया है, उसी तरह जैसे ऑपरेटर जब चाहते हैं तब केपी (केतन पारेख) पर सारी ठींकरा मढ़ देते हैं। रिलायंस कम्युनिकेशंस आज नई तलहटी तक गिर गया। असल में जब भी कुछ गलत होता है, बाजार में एडीएजी को लेकर अफवाहें फैला दी जाती हैं। ताजा अफवाह यह है कि रिलायंस म्यूचुअल फंड पर 20,000 करोड़ रुपए के विमोचन का दबाव है। इसलिए वह जहां भी मौका पा रहा है, बेचता जा रहा है। विमोचन का मतलब कि निवेशक म्यूचुअल फंड की यूनिटों से निकलना चाहते हैं।

हम बाजार को लेकर अब भी तेजी की धारणा रखते हैं, लेकिन सावधानी के साथ। हर मौके का हरसंभव बेहतर ट्रेडिंग के लिए इस्तेमाल करते हुए। हमारी यह स्थिति बदल नहीं सकती। लेकिन मैं अपने सदस्यों को सलाह दूंगा कि वे अगले पूरे महीने भर ट्रेडिंग से दूर रहें और बाजार को थिर हो जाने दें। एकदम जरूरी हो तभी ट्रेडिंग करें। मगर, सतर्कता के साथ क्योंकि किसी भी तरह झुकने का मतलब होगा बाजार के दूसरी तरफ जाने की मार का शिकार बनना।

प्रतिभा उस लक्ष्य को भेदती है जिसे कोई दूसरा नहीं भेद सकता। जीनियस उस लक्ष्य को भेदता है जिसे कोई दूसरा देख नहीं सकता।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का पेड-कॉलम है, जिसे हम यहां मुफ्त में पेश कर रहे हैं)

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