हेल्थकेयर को कभी भी बाज़ार शक्तियों के हवाले नहीं किया जा सकता क्योंकि वो बाजार के नियमों से नहीं चलता। उसमें अनिश्चितता व विपत्ति के पहलू हैं। उसे हमदर्दी व सम्वेदना के बिना कतई नहीं चलाया जा सकता। यह भी गौरतलब है कि भारत में हेल्थकेयर एक ऐसा क्षेत्र है जहां रेग्युलेशन न के बराबर है। कोई भी कहीं भी अस्पताल या नर्सिंग होम खोल सकता है और किसी की कोई जवाबदेही नहीं। यही वजह है कि डॉक्टर व मेडिकल प्रोफेशनल के तमाम लोग अस्पताल खोलकर बैठ गए हैं और उनकी कमाई सीधे-सीधे मुनाफे से जुड़ गई है। इसलिए इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़ दें तो मेडिकल प्रोफेशनल में मरीज की सेवा नहीं, बल्कि लूट का बोलबाला है। आयुष्मान जन आरोग्य योजना की बात करें तो इसमें एम्पैनल अस्पताओं की संख्या 30,523 है जिसमें से 17,064 सरकारी और 13,459 प्राइवेट हॉस्पिटल हैं। लेकिन सरकारी अस्पताओं का हाल भगवान भरोसे है और निजी अस्पताल मरीज को जमकर लूटते हैं या टरका देते हैं। कहीं भी ठीक-ठाक अस्पताल में पूछिए तो वे साफ कह देते हैं कि उनके यहां आयुष्मान कार्ड नहीं चलता। कुछ ही महीने पहले निजी अस्पतालों ने आयुष्मान योजना के लाभार्थियों का इलाज करने से इसलिए मना कर दिया था क्योंकि उन्हें सरकार से बकाये का भुगतान नहीं मिला था। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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