जिस दिन कश्मीर में मिनी स्विटज़रलैंड कहे जानेवाले पहलगाम की बैसरन घाटी में आतंकी देश के कोने-कोने से आए सैलानियों को गोलियों से भून रहे थे, उसी दिन हमारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अमेरिका में कैलिफोर्निया की स्टैंफोर्ड यूनिवर्सिटी के हूवर इंस्टीट्यूशन में भाषण दे रही थीं। उन्होंने कहा कि भारत में युवा कार्यशक्ति को सोखने, आयात निर्भरता कम करने और प्रतिस्पर्धी वैश्विक सप्लाई श्रृंखला बनाने के लिए मैन्यूफैक्चरिंग को स्केल-अप करना ज़रूरी है। उनका कहना था कि अगले दो दशकों में भारत की विकासगाथा साहसिक सुधारों पर टिकी है। साथ ही उन्होंने दावा किया कि भारत की योजना अगले दो दशकों में जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 12% से बढ़ाकर 23% कर देने की है ताकि आर्थिक विकास को गति दी जा सके और रोज़गार पैदा किया जा सके। याद दिला दें कि मनमोहन सरकार ने 2012 में ही जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का हिस्सा 2022 तक 25% और मोदी सरकार ने 2014 में 2025 तक 25% पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन यह 2012 में 16% था और अब भी 12% से 16% के बीच डोल रहा है। मोदीराज के 11 साल में यह बढ़ने के बजाय घट गया। फिर सरकार की तरफ से दो दशक बाद वही मृग मरीचिका क्यों दिखाई जा रही है? अब बुधवार की बुद्धि…
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