बजट से 44946 करोड़ ज्यादा खर्च होंगे इस साल, पर बाजार ठंडा

लोकसभा में सोमवार को एक तरफ विपक्ष भ्रष्टाचार के मुद्दे पर संयुक्त संसदीय समिति बनाने की मांग कर रहा था, वहीं दूसरी तरफ वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने उसके हंगामे की परवाह न करते हुए चालू वित्त वर्ष 2010-11 के आम बजट के अनुदान की अनुपूरक मांगें पेश कीं। वित्त मंत्री ने सदन को बताया कि सरकार को इस बार खर्चों के लिए बजट के ऊपर से 44,945.52 करोड़ रुपए चाहिए। इसमें से 25,132.55 करोड़ रुपए तो विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की बचत, प्राप्तियों या वसूलियों से मिल जाएंगे। 60 लाख रुपए का सांकेतिक प्रावधान किया गया है। इसके बाद बाकी बची रकम 19,182.37 करोड़ रुपए है जिसका इंतजाम किया जाना है।

लेकिन वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि इस अतिरक्त खर्च से इस साल के राजकोषीय घाटे पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और उसे बजट में व्यक्त अनुमान जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 5.5 फीसदी तक सीमित रखा जाएगा। उन्होंने लोकसभा से उर्वरक कंपनियों की क्षतिपूर्ति के लिए 5000 करोड़ रुपए और लागत से कम दाम पर अपने उत्पाद बेच रही तेल मार्केटिंग कंपनियों की नकद क्षतिपूर्ति के लिए भी 278 करोड़ रुपए मांगे। जाहिर है कि सरकार के ये खर्च अर्थव्यवस्था को गति देंगे। पर, बाजार में खर्च बढ़ने की इस सूचना का कोई खास असर नहीं दिखाई दिया।

स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में मुद्रा, जिंस व बांडों वगैरह के निवेश से जुड़े अनंत नारायण का कहना है कि इससे सिस्टम की तरलता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन जब सरकार की तरफ से खर्च किया गया यह धन बाजार में आएगा तब जरूर थोड़ी राहत मिलेगी। उनका कहना था कि बाजार ने इस पर कोई प्रतिक्रिया इसलिए नहीं दिखाई क्योंकि यह अभी महज घोषणा है, रकम अभी बाहर आई नहीं है।

सोमवार को 7.80 फीसदी ब्याज और 2020 में परिपक्व होनेवाले दस साल के सरकारी बांडों पर यील्ड की दर 8.0671 फीसदी रही है जो लगभग शुक्रवार के बराबर है। हां, दिन में यह जरूर ऊपर में 8.904 फीसदी और नीचे में 8.0548 फीसदी तक चली गई थी। यहां एक बात नोट कर लें कि यील्ड की दर बढ़ती है तो बांड के दाम घटते हैं और दर घटती है तो बांड के दाम बढ़ते हैं। यील्ड वह प्रभावी ब्याज दर है कि जो बांड की मौजूदा खरीद पर ग्राहक को मिलेगी। जैसे, अभी बांड के दाम कम होने के कारण ही उसके खरीदार को 7.80 फीसदी के बजाय 8.07 फीसदी ब्याज मिल रहा है।

गौरतलब है कि साल के बजट अनुमान से ज्यादा खर्च के लिए सरकार को संसद की अनुमति लेनी पड़ती है। इसके लिए वह अनुदान की अनुपूरक मांगें पेश करती है। आमतौर पर सरकार को अतिरिक्त खर्च ब्याज भुगतान और सब्सिडी के चलते करना पड़ता है। इस साल बजट में कुल खर्च का अनुमान 11.09 लाख करोड़ रुपए का है। इसमें से 3.81 लाख करोड़ रुपए उधार से जुटाए जाने हैं। दूसरे शब्दों में यही सरकार का राजकोषीय घाटा है। यह इस बार जीडीपी के 5.5 फीसदी के अनुमान से इसलिए नहीं बढ़ेगा क्योंकि सरकार को 3जी स्पेक्ट्रम व ब्रॉडबैंड की नीलामी से एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रकम मिल गई है, जबकि अनुमान 35,000 करोड़ रुपए का था। साथ ही सरकारी कंपनियों के विनिवेश से भी उसे अच्छा-खासा धन मिल रहा है।

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