बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं की शिकायतों के मद्देनज़र सरकार गुमराह करनेवाले विज्ञापनों की कारगर जांच के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति बनाने पर विचार कर रही है। खाद्य व उपभोक्ता मामलों के मंत्री के वी थॉमस ने एएससीआई (एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया) द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में यह जानकारी दी।
झूठे व भ्रामक विज्ञापनों के बार में प्रोफेसर थॉमस ने कहा कि ऐसे विज्ञापनों को छपने से पहले ही रोकने की ज़रूरत है ताकि वे मासूम उपभोक्ताओं को हानि न पहुंचा सकें। इसके लिए मौजूदा कानूनों को कारगर बनाने और स्व-नियमन तंत्र को सुदृढ़ बनाने की ज़रूरत है।
उन्होंने कहा कि बेशक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, उपभोक्ताओं को गलत व्यापार व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करता है और भ्रामक विज्ञापनों के बारे में उपभोक्ता अदालतों ने काफी अच्छे निर्णय भी लिए हैं, लेकिन उनके पास विज्ञापनों के निरीक्षण का अधिकार नहीं है और न हीं उनके पास कोई जांच एजेंसी है। वे झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के लिए उपभोक्ताओं को मुआवज़ा तो दिला सकती हैं लेकिन ऐसे विज्ञापनों पर नकेल कसने के लिए कोई मशीनरी नहीं है। इनके पास सुधारात्मक विज्ञापनों के लिए निर्देश जारी करने का अधिकर है लेकिन यह निर्देश तभी प्रभावी हो सकते हैं, जब ये सामने आने के तुरंत बाद ही जारी हों।
इस सिलसिले में उन्होंने कुछ मुकदमों के उदाहरण दिए और कहा कि फैसले में देरी के कारण लोग भ्रामक विज्ञापनों के बुरे परिणामों से नहीं बच पाए। उन्होंने भ्रामम विज्ञापनों के सिलसिले में खासतौर पर ऋषिकेश के नीरज क्लीनिक, पिरामल हेल्थकेयर, एयरटेल डिजिटल टीवी और न्यूज़ेन गोल्थ हेयर ऑयल का उल्लेख किया।