सरकारी खर्च, भ्रष्टाचार व चढ़ता बाज़ार

शेयर बाज़ार बड़ा समदर्शी होता है। उसे धन के प्रवाह से मतलब है। वो धन काला है या सफेद, उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि कुछ लोगों के पास इफरात धन आ रहा है, जबकि ज्यादातर लोग बदहाल होते जा रहे हैं। इधर सरकार जहां कहीं भी गुंजाइश है, वहां से जमकर टैक्स वसूल रही है। साथ ही देश के नाम पर ऋण लेने में कोई कोताही नहीं बरत रही। इस तरह मिले धन से पूंजीगत व्यय बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को बूस्टर डोज़ दिए जा रही है। पर इस खर्च का बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार के रूप में निकलकर शेयर बाज़ार में आ रहा है। मुठ्ठी भर लोगों की बढ़ती कमाई के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के इस धन ने शेयर बाज़ार में हाई-टाइड ला दिया है जो विदेशी निवेशकों के निकलने के बावजूद उतरने का नाम नहीं ले रहा। बाज़ार को मतलब नहीं कि इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने के लिए बनाए गए कितने एयरपोर्ट ध्वस्त हो रहे हैं, कितने पुल टूटकर बह रहे हैं या नई संसद तक की छत से पानी टपक रहा है। उसे किसानों की दुर्दशा या बेरोज़गारों के बढ़ते असंतोष से फर्क नहीं पड़ता। वो तब तक बढ़ता रहेगा, निफ्टी व सेंसेक्स नया शिखर बनाते रहेंगे, जब तक धन की उफनती बाढ़ उतरती नहीं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…

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