देश संस्थाओं से बनता है। संस्थाएं धीरे-धीरे सदियो में बनती हैं और उनके बनने-बनाने में पीढ़ियां खप जाया करती हैं। जो संस्थाओं को सुनियोजित ढंग से तोड़ या कमज़ोर कर रहा हो, वो देश को मजबूत नहीं, खोखला करता है। भारतीय रिजर्व बैंक 1 अप्रैल 1935 को बनी वो संस्था है जो देश के संपूर्ण मौद्रिक व बैंकिंग तंत्र की संचालक ही नही, नियामक भी है। मोदी सरकार ने 11 साल के शासन में इस सस्था को कमज़ोर और खोखला कर दिया है। पहले तो उसने गवर्नरों की नियुक्ति में दखल देकर उसकी स्वायत्तता खत्म कर दी। इसका नतीजा नवंबर 2016 की नोटबंदी जैसे घातक कदम के रूप में सामने आया। फिर उसकी नज़र रिजर्व बैंक के खज़ाने पर लग गई। उसने दबाव डालकर पहले रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर ऊर्जित पटेल से इस्तीफा दिलवाया। फिर उस पद पर अपने दास की भूमिका निभा रहे शक्तिकांत दास को नियुक्त कर दिया। रिजर्व बैंक के आठ दशक से ज्यादा के इतिहास में पहली बार अर्थशास्त्र या फाइनेंस के विद्वान नहीं, बल्कि इतिहास पढ़कर आईएएस बने शख्स को इतना अहम पद सौंपा गया। दास के हाथों में कमान देकर बिमल जालान समिति बना दी गई, जिसने रिजर्व बैंक की सारी रिस्क प्रबंधन व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। उसके बाद तो रिजर्व बैंक कोई स्वतंत्र व स्वायत्त संस्था नहीं, बल्कि सरकार का विभाग बनकर रह गया है। अब सोमवार का व्योम…
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