राजभाषा से लेकर राष्ट्रभाषा के बीच त्रिशंकु बनी हिंदी की ऐसी दुर्गति हमारा सरकारी अमला कर रहा है जिसका कोई जवाब नहीं। मंगलवार को राजधानी दिल्ली में आयोजित एक समारोह में साल 2011 के साहित्य एकेडमी पुरस्कार दिए गए। इस समारोह के मुख्य अतिथि नामवर सिंह थे। लेकिन संस्कृति मंत्रालय की तरफ से अंग्रेजी में दी गई जानकारी में जहां नामवर सिंह को ‘क्रिटिक’ बताया गया है, वहीं हिंदी में जारी विज्ञप्ति में उन्हें हिंदी का ‘प्रख्यात व्यंग्यकार’ बताया गया है।
कितनी अजीब बात है कि देश के संस्कृति मंत्रालय के प्रचार विभाग में ऐसे बाबू लोग बैठे हैं जिन्हें नामवर सिंह जैसी शख्सियत के बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह छोटा-सा उदाहरण हमारे सरकारी अमले की कलई खोलकर रख देता है।
खैर, वर्ष 2011 के लिए साहित्य एकेडमी पुरस्कार स्वर्गीय कबिन फुकन (असमी), मणिन्द्र गुप्ता (बंगाली), प्रेमानंद मुसाहरी (बोडो), नसीम शफी (कश्मीरी), मेलवीन रॉड्रिग्स (कोंकणी), हरेकृष्ण सतपथी (संस्कृत), आदित्य कुमार मंडी (संथाली) और खलील मामून (उर्दू) तो दिए गए हैं। इसके अलावा काशीनाथ सिंह (हिन्दी), गोपालकृष्ण पाई (कन्नड), क्षेत्री बीरा (मणिपुरी), कल्पना कुमारी देवी (उडि़या), बलदेव सिंह (पंजाबी), अतुल कनक ( राजस्थानी) और एस. वेंकटेशन (तमिल) ने भी पुरस्कार प्राप्त किए।
रामचन्द्र गुहा (अंग्रेजी) को विवरणात्मक इतिहास की उनकी पुस्तक के लिए, मोहन परमार (गुजराती) को लघुकथा की उनकी पुस्तक के लिए, एन के सानू (मलयालम) को जीवनी की उनकी पुस्तक के लिए और मोहन गेहानी (सिंधी) को नाटकों की उनकी पुस्तक के लिेए पुरस्कृत किया गया है। मैथिली भाषा के लिए पुरस्कार की घोषणा होना अभी तक नहीं हुई है।