एक तरफ रूपए और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए बाहर से डॉलर लाने की मशक्कत जारी है। दूसरी तरफ हम भारतीयों की सोने की भूख सारे किए धरे पर पानी फेर दे रही है। फिलहाल 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक खरमास के कारण देश में सोने की खरीद थमी पड़ी है। लेकिन सोने की मादकता ने देश के खजाने पर भयंकर दबाव बना रखा है। वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक अप्रैल से नवंबर 2011 तक के आठ महीनों में हमने 41.40 अरब डॉलर (करीब 2.15 लाख करोड़ रुपए) का सोना आयात किया है। इन आठ महीनों में हमारा व्यापार घाटा 116.8 अरब डॉलर का है।
अगर सोना आयात का बोझ नहीं होता तो हमारा व्यापार घाटा 75.4 अरब डॉलर ही होता। गौरतलब है कि व्यापार घाटे में अगर दूसरे देशों के साथ हुए सेवा व्यापार व बाहरी निवेश से रॉयल्टी वगैरह के रूप में मिली आय को जोड़ दें तो देश के चालू खाते का निर्धारण होता है। चालू खाते का यह घाटा भुगतान संतुलन के लिए बड़ा मायने रखता है। इसे भी राजकोषीय घाटे की तरह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में मापा जाता है। अगर चालू खाते का घाटा जीडीपी के 3 फीसदी से ज्यादा हो जाता है तो इसे खतरे की घंटी माना जाता है।
वैसे, चालू खाते का घाटा अक्सर व्यापार घाटे से कम रहता है। जैसे, रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-जून 2011 की तिमाही में देश का व्यापार घाटा 35.4 अरब डॉलर था, जबकि चालू खाते का घाटा 14.1 अरब डॉलर ही था। यह जीडीपी का 3.4 फीसदी निकलता है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने पूरे वित्त वर्ष 2011-12 के लिए माना है कि चालू खाते का घाटा जीडीपी का 2.7 फीसदी रहेगा।
परिषद के चेयरमैन सी रंगराजन का कहना है कि यह रुपए के गिरने से महंगे होते आयात के चलते बढ़ जाएगा। लेकिन ज्यादा नहीं बढ़ेगा। उम्मीद है कि जनवरी-मार्च 2012 की तिमाही में बाहर से विदेशी पूंजी का आगम बढ़ेगा। बीते वित्त वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही में चालू खाते का घाटा जीडीपी का 3.1 फीसदी था। लेकिन साल का अंत आते-आते इसे 2.6 फीसदी पर ले आया गया।
लेकिन अगर हम मानने के लिए मान लें कि देश में सोने का आयात न करना पड़ता तो नवंबर तक के आठ महीनों में हमारा व्यापार घाटा सीधे-सीधे 35.45 फीसदी कम हो जाता है। हमारा सोना आयात पूरे साल में कम से कम 45 अरब डॉलर हो जाने का अनुमान है। यह 1700 अरब डॉलर के अनुमानित जीडीपी का करीब 2.5 फीसदी बैठता है। अगर मान लें कि इस साल के अंत देश के चालू खाते का घाटा जीडीपी का 3.5 फीसदी रहेगा तो सोने का आयात न होता तो चालू खाते का घाटा जीडीपी का मात्र एक फीसदी होता।
चालू खाता अगर जीडीपी का एक फीसदी रहता है तो इसे काफी अच्छा माना जाता है। बल्कि किसी भी विकासशील देश के लिए इतना स्तर जरूरी माना जाता है। सोने का चक्कर न होता तो डॉलर की इतनी निकासी न होती और न ही रुपया इस कदर डॉलर के सापेक्ष 22 फीसदी खोखला हो जाता। बता दें कि भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा खरीदार है। हम अपनी मांग का केवल 0.5 फीसदी ही सोना देश में पैदा करते हैं। बाकी 99.5 फीसदी आयात करते हैं। चालू वित्त वर्ष में नवंबर तक हम करीब 735 टन सोना आयात कर चुके हैं। साल के अंत तक इसके 900 टन हो जाने का अनुमान है। पिछले साल हमें 959 टन सोना विदेश से आयात किया था।
यह भी बड़ी विचित्र बात है कि सोने के आयात को व्यापारिक (मर्केंटाइज) आयात में गिना जाता है, जबकि व्यावहारिक रूप से यह पूंजी खाते का मामला है। हकीकत में देखें तो यह भारतीयों द्वारा किसी विदेशी संपदा में निवेश करने जैसा है। इससे देश की विदेशी मुद्रा तरलता भी सूखती है और अर्थव्यवस्था में कोई सार्थक योगदान नहीं होता।