25% पब्लिक होल्डिंग की नई शर्त का राज़

आईपीएल की फ्रैंचाइजी से शरद पवार एंड फेमिली का रिश्ता साबित करना कठिन है, मुश्किल नहीं। लेकिन कुछ ऐसे सच हैं जिनको कभी साबित नहीं किया जा सकता। ऐसा ही एक सच है कि हमारे शेयर बाजारों में बड़े पैमाने पर नेताओं का पैसा लगा हुआ है। और, ऐसा ही एक ताजातरीन सच है कि वित्त मंत्रालय ने लिस्टेड कंपनियों में न्यूनतम 25 फीसदी पब्लिक होल्डिंग का जो नियम बनाया है, उसका एक खास मकसद स्विस बैंकों में रखे भारतीयों के धन को खपाना है जिसमें से बड़ा हिस्सा नेताओं का है।

ब्रोकर फर्म एसएमसी कैपिटल के एक अध्ययन के मुताबिक अभी हमारे शेयर बाजारो में लिस्टेड 183 कंपनियां ऐसी हैं जिसमें पब्लिक की हिस्सेदारी 25 फीसदी से कम है। इनमें से 35 कंपनियां सार्वजनिक क्षेत्र की हैं, जबकि 148 निजी क्षेत्र की हैं। नए नियम के मुताबिक इन कंपनियों को पब्लिक होल्ड़िंग 25 फीसदी पर लाने के लिए करीब 1,50,527 करोड़ रुपए के एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर), क्यूआईपी (क्लालिफाइड इंस्टीट्यूनल प्लेसमेंट) या ओएमएस (ओपन मार्केट सेल) लाने पड़ेंगे।

सरकार के इस कदम के बाद सबसे बडा सवाल यही उठाया जा रहा है कि इतनी ज्यादा रकम आएगी कहां से? प्राइमरी बाजार में नए इश्युओं की इस बाढ़ से सेंकेंडरी या शेयर बाजार में निवेश सूख सकता है और वहां भारी गिरावट आ सकती है? लेकिन सूत्रों के मुताबिक सरकार निश्चिंत है क्योंकि उसे कम से कम सार्वजनिक क्षेत्र की 35 कंपनियों के बारे में सौ फीसदी यकीन है कि इनमें निवेश की कोई कमी नहीं पड़ेगी। असल में यही वे कंपनियां हैं जिन्हें कुल अनुमानित 1,50,527 करोड़ रुपए में से 1,24,547 करोड़ रुपए यानी 83 फीसदी रकम जुटानी है। निजी क्षेत्र की 148 कंपनियों को तो केवल 25,981 करोड़ रुपए ही जुटाने हैं और वह भी धीरे-धीरे करके।

राजधानी दिल्ली के एक उच्चपदस्थ सूत्र ने बताया कि सरकारी कंपनियों के एफपीओ इतनी आसानी से सब्सक्राइब हो जाएंगे कि किसी को पता भी नहीं चलेगा क्योंकि इसमें भारतीय नेताओं का वह पैसा लगेगा जो अभी स्विस बैंक के गोपनीय खातों में जमा है। उनका तो यह भी कहना था कि फटाफट यह फैसला लेने की खास वजह यह है कि स्विटरलैंड की संसद के ऊपरी सदन सीनेट ने इसी गुरुवार, 3 जून को एक विधेयक पास किया है जिसके मुताबिक वहां की सरकार स्विस बैंक यूबीएस एजी में अवैध धन रखनेवाले 4450 अमेरिकियों के नाम अमेरिकी सरकार को सौंप देगी। हफ्ते-दस दिन में यह निचले सदन से भी पारित हो जाने के बाद कानून बन जाएगा। यह सूत्रों की नहीं, बल्कि वॉल स्ट्रीट जरनल की एक रिपोर्ट में बताया गया है।

असल में यह बेहद महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि इसी साल जनवरी में स्विटजरलैंड की एक अदालत ने फैसला सुनाया था कि यूबीएस के खातों के नाम जाहिर रखना स्विटजरलैंड के कानूनों का उल्लंघन होगा। लेकिन स्विटजरलैंड की सरकार पिछले साल ही अमेरिका को उसके उन नागरिकों का नाम बताते का वचन दे चुकी है जिन्होंने अपना अवैध धन स्विस खातों में रखा हुआ है और उसे यह वचनबद्धता अगस्त 2010 तक पूरी कर देनी है। अमेरिका के दबाव को पूरा करने के लिए स्विटजरलैंड सरकार को नया विधेयक लाना पड़ा है। कानून बन जाने के बाद भी इस पर जनमत संग्रह कराने का दबाव है. लेकिन सरकार इससे बचने की हरचंद कोशिश कर रही है।

हमारे राजनीतिक सूत्र ने परम गोपनीयता की शर्त पर बताया कि प्रणव मुखर्जी से लेकर मनमोहन सिंह को भरोसा है कि कानून बन जाने के बाद स्विस बैंक वहां खरबों की काली कमाई रखनेवाले भारतीयों के नाम भी बता देगा। इसलिए राजनीतिक हलकों में स्विस सदन में गुरुवार को विधेयक पास हो जाने के बाद खलबली मच गई है। इसी को शांत करने के लिए ही अगले दिन शुक्रवार को ही वित्त मंत्रालय ने 25 फीसदी की शर्त लागू करने की अधिसूचना जारी करवा दी। नहीं तो यह मामला करीब 11 महीनों से लटका पड़ा था क्योंकि वित्त मंत्री तो 9 जुलाई 2009 के बजट भाषण में ही इसकी घोषणा कर चुके थे। अब तमाम नेता निश्चिंत हो गए हैं कि वे किसी न किसी रूप में अपनी अवैध कमाई पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) की नई पूंजी में डालने में कामयाब हो जाएंगे।

3 Comments

  1. स्विस बैंको में जमा काला धन किसका है, कैसे कमाया और क्या धांधली की यह तो जांच की बात है, लेकिन 1,50,000 करोड़ की पूंजी का भारत की कंपनियों में लगना मुझ दुख की बात नहीं लग रही.

  2. स्विस बैंक में नेताओ के जमा कला धन को भारत में लाने की उठ रही मांग को देखते हुए
    तो कहीं ? यह कदम नहीं उठाया गया है ! आखिर रामदेव बाबा को जनसमर्थन मिले उसके पहले ही नेताओ को अपने धन को ठिकाने लगाने का जुगाड़ तो करना ही पड़ेगा |

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