मुक्त मन

मंजिल दूर है। सफर लंबा है। चढ़ाई तीखी है। फिर इतना भारी बोझ क्यों? ईर्ष्या-द्वेष, दुश्मनी, बदला, देख लेंगे, निपट लेंगे। मन में इतना कचरा! अरे, फेंकिए ये बोझ और मुक्त मन से उड़ जाइए।

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