अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ही नहीं, बल्कि उसकी मुद्रा डॉलर आज भी दुनिया भर की रिजर्व करेंसी बनी हुई है। वहां के वित्तीय बाज़ारों में कुछ हो जाए तो सारी दुनिया हिल जाती है। अमेरिका के ट्रेजरी बॉन्डों पर यील्ड की दर पर दुनिया भर की ब्याज दरें टिकी हुई हैं। जब ऐसे अमेरिका की संप्रभु रेटिंग या साख पर सवाल उठ जाएं तो भारत समेत दुनिया के हर देश को चौकन्ना हो जाने की ज़रूरत है। अमेरिका की रेटिंग एएए से घटकर एए1 पर आ चुकी है, जबकि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जर्मनी, डेनमार्क, नॉरवे, नीदरलैंड, स्विटज़रलैंड व स्वीडन समेत यूरोपीय संघ की एएए की सर्वोच्च रेटिंग बनी हुई है। लेकिन कब तक? जर्मनी व कनाडा लम्बे समय से वित्तीय स्थायित्व के मॉडल माने जाते रहे हैं। मगर, वे भी इस समय बजट असंतुलन की समस्या से जूझ रहे हैं। इसलिए वे कभी भी सर्वोच्च रेटिंग से नीचे खिसक सकते हैं। आईएमएफ के बाद ओईसीडी (ऑर्गनाइनजेशन फॉर इकनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट) यूं ही विश्व अर्थव्यवस्था के विकास का अनुमान 2024 के 3.3% से सीधे घटाकर 2025 व 2026 में 2.9% नहीं कर दे रहा। खतरा और रिस्क काल्पनिक नहीं, बल्कि वास्तविक हैं। ऐसे में क्या हो भारत की प्राथमिकता? हवाबाज़़ी या ठोस ज़मीनी काम! अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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