शक्तिकांत दास ने अगर सामान्य नहीं, आर्थिक इतिहास पढ़ा होता या वित्त मंत्रालय में रहते हुए सत्ता तंत्र के बजाय वित्तीय तंत्र की समझ बना ली होती तो उन्हें भलीभांति पता होता कि भारत जैसे निर्यात से ज्यादा आयात करने देश में विदेशी मुद्रा भंडार का मुख्य काम होता है चालू खाते (माल व सेवा) और पूंजी खाते (ऋण अदायगी से लेकर विदेशी निवेश), दोनों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय सौदों को फाइनेंस करना। विदेशी मुद्रा भंडार जितना ज्यादा, देश भविष्य को लेकर उतना ही आश्वस्त हो सकता है और अंतरराष्ट्रीय देनदारियों को आसानी से निपटा सकता है। जिन देशों को कुल खर्च सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) से कम होता है और चालू खाता सरप्लस में होता है, उनके लिए चिंता की बात नहीं। लेकिन भारत के साथ कतई ऐसा नहीं है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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