मोदी सरकार ने रोज़गार मिले लोगों की गिनती मे भयंकर ठगी व फ्रॉड किया है और देश-दुनिया के आंखों में धूल झोंकी है। फिर भी आबादी के अनुपात में रोज़गार उपलब्ध कराने में उसका रिकॉर्ड यूपीए सरकार से बदतर रहा है। वैसे, यूपीए सरकार के दौरान भी रोज़गार की स्थिति बेहतर नहीं थी। यूपीए सरकार के पहले साल 2004-05 आबादी में कामगारों का अनुपात या डब्ल्यूपीआर 62.2% था। यह घटते-घटते 2009-10 तक 55.9% और 2011-12 तक 54.7% पर पहुंच गया। मई 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद भी गिरावट का यह सिलसिला जारी रहा। 2017-18 में यह अनुपात 46.8% तक जा गिरा। इसके बाद मोदी सरकार ने बड़े करतब से इसे बढ़ाना शुरू किया और 2023-24 के अंत तक 58.2% पर पहुंचा दिया। ध्यान देने की बात यह है कि इसी दौरान देश में 2020-21 और 2021-22 के साल कोविड महामारी के प्रकोप से घिरे थे, जब लाखों मजदूरों की नौकरी छूट गई और उन्हें वापस जाकर गांवों में खेती-बारी का आसरा लेना पड़ा। कंस्ट्रक्शन उद्योग तक में मंदी छा गई। नोटबंदी से तबाह हुए तमाम छोटे-छोटे उद्योग धंधे गलत जीएसटी के लागू होने और नासमझ व जिद्दी लॉकडाउन के चलते बंद हो गए। फिर भी मोदी सरकार रोज़गार बढ़ाने का दावा कर रही है वो भी तब, जब श्रमबल भागीदारी की दर दस साल में 63.7% से घटकर 49.8% पर आ चुकी है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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