सालों-साल से बनाया जा रहा 24-25 स्टॉक्स का जो पोर्टफोलियो सितंबर तक 60-62% फायदा दिखा रहा था, दो महीने में ही वहां फायदा 30-32% तक सिमट जाए तो किसी का भी दुखी हो जाना स्वाभाविक है। कमज़ोर कंपनियों के शेयर गिर जाएं तो समझ में आता है। लेकिन अच्छी-खासी मजबूत कंपनियों के शेयर घाटा देने लग जाएं तो धैर्यवान व समझदार निवेशक भी मायूस हो जाता है और खुद को असहाय महसूस करता है। लेकिन इतिहास साक्षीऔरऔर भी

याद रखें कि आप ट्रेडिंग कर रहे हैं, लम्बे समय का निवेश नहीं। फिर भी उन्हीं कंपनियों में ट्रेड करना चाहिए जो फंडामेंटल स्तर पर मजबूत हों। कभी कमज़ोर कंपनियों के स्टॉक्स में ट्रेड न करें। यकीनन, निवेश के लिए दो-तीन साल या ज्यादा का टाइमफ्रेम लेकर चलना पड़ता है। उठना-गिरना शेयर बाज़ार का स्वभाव है। कोरोना का प्रकोप बढ़ा तो बीएसई सेंसेक्स साल 2020 के शुरुआती दो-तीन महीनों में ही 41,000 अंक से गिरते-गिरते 30,000 अंकऔरऔर भी

सरकार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के निकलने से परेशान हो गई है। इतनी ज्यादा कि अब उसे डैमेज कंट्रोल में उतरना पड़ रहा है। सबसे पहले उसने रिजर्व बैंक से घोषित करवाया कि एफपीआई चाहें तो किसी कंपनी में 10% से ज्यादा के निवेश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में बदल सकते हैं। उसका मानना है कि इससे एफपीआई की मुनाफावसूली पर लगाम लग सकती है। फिर सेबी की तरफ से खबर चलवाई गई कि घबराने कीऔरऔर भी

क्या सचमुच भारत की विकासगाथा को कोई आंच नहीं आई है और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) नाहक हमारे शेयर बाज़ार से भागे जा रहे हैं? आज की हकीकत यह है कि पिछले दस सालों में भारत की विकासगाथा अडाणी व अम्बानी जैसे चंद उद्योगपतियों और सरकार से दलाली खा रहे या सत्ताधारी दल को चंदा खिला रहे धंधेबाज़ों तक सिमट कर रह गई है। इस विकासगाथा में देश में सबसे ज्यादा रोज़गार देनेवाले कृषि और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्रऔरऔर भी