सब हल्ला मचा रहे हैं कि देश में ऋण-जमा या लोन-डिपॉजिट अनुपात (एलडीआर) घट गया है। लेकिन कोई नहीं बता रहा कि इसकी सबसे प्रमुख वजह यह है कि रिजर्व बैंक ने काफी कम मुद्रा निर्माण किया है। बीते वित्त वर्ष 2023-24 में उसके केवल 0.6 लाख करोड़ रुपए की नयी मुद्रा बनाई है, जबकि ठीक पिछले तीन वित्त वर्षों में 2019-20 से 2022-23 तक 20 लाख करोड़ रुपए की नयी मुद्रा सृजित की थी। रिजर्व बैंकऔरऔर भी

बैंकों में डिपॉजिट के घटने की क्या वजहें हो सकती हैं? आम लोगों पर दोष मढ़ देना बड़ा आसान है कि बैंकों में अपनी बचत रखने के बजाय वे उसे अब शेयर बाज़ार व म्यूचुअल फंड में लगा रहे हैं। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि जो लोग शेयर बाज़ार व म्यूचुअल फंड में निवेश कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर ऐसे युवा हैं जो बैंकों में कभी धन रखते ही नहीं थे। बैंकों में पारम्परिक रूपऔरऔर भी

एक तरफ विकसित भारत का सपना। दूसरी तरफ लोगों की घटती जमा और बढ़ते उधार। एचडीएफसी बैंक की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में उधार व जीडीपी के अनुपात की तुलना एशिया के अन्य देशों से करें तो यह अनुपात चीन तो छोड़िए थाईलैंड और मलयेशिया जैसे देशों से भी कम है। साथ ही जिस तरह के कड़े लिक्विडिटी कवरेज अनुपात (एलसीआर) की पेशकश रिजर्व बैंक ने कीऔरऔर भी