एक तरफ विकसित भारत का सपना। दूसरी तरफ लोगों की घटती जमा और बढ़ते उधार। एचडीएफसी बैंक की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में उधार व जीडीपी के अनुपात की तुलना एशिया के अन्य देशों से करें तो यह अनुपात चीन तो छोड़िए थाईलैंड और मलयेशिया जैसे देशों से भी कम है। साथ ही जिस तरह के कड़े लिक्विडिटी कवरेज अनुपात (एलसीआर) की पेशकश रिजर्व बैंक ने की है, उससे बैंकों के पास उधार देने के लिए डिपॉजिट की मात्रा घट और उनके उधार देनी की क्षमता कम हो जाएगी। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स से जुड़ी संस्था एस एंड पी ग्लोबल ने कहा है कि रिजर्व बैंक की कड़ाई से उधार की गति धीमी पड़ गई है। लेकिन रिजर्व बैंक डिपॉजिट और उधार के मौजूदा असंतुलन पर संजीदगी से गौर करने के बजाय लमतड़ानी कर रहा है। गवर्नर शक्तिकांत दास ने संरचनात्मक समस्या की बात तो उठाई है। मगर कहा है कि अभी तक जो परिवार और उपभोक्ता अपनी बचत बैंकों में रखते आए थे, वे अब इसे पूंजी बाज़ार और अऩ्य वित्तीय मध्यवर्ती माध्यमों में लगाने लगे हैं। दूसरे शब्दों में बैंकों की घटती जमा का दोष उन्होंने शेयर बाज़ार और म्यूचुअल फंडों में बढ़ते निवेश पर मढ़ दिया है। अब मंगलवार की दृष्टि…
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