शेयर बाज़ार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) पर यह कहावत बखूबी लागू होती है कि गंजेड़ी यार किसके, दम लगाकर खिसके। एफपीआई का चरित्र ही ऐसा है कि कोई देश उन पर भरोसा नहीं कर सकता। वे वहीं और तभी तक निवेश करते हैं, जब तक उन्हें मुनाफा मिलता है। हालांकि निवेश में खटाखट नहीं, बल्कि दो-चार साल की सोचकर चलते हैं। सरकारी प्रचार और आंकड़ों की परवाह नही करते। इधर जब से उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था केऔरऔर भी