निवेशकों की शिक्षा व जागरूकता के अधिकांश कार्यक्रम पांच सितारा होटलों और अंग्रेज़ी में ही होते हैं। स्थानीय भाषाओं में जो कुछ भी होता है, वह महज खानापूर्ति है। वो भी इसलिए ताकि निवेशकों के धन से बने फंड से बिचौलियों की कमाई हो सके। कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय, सेबी, बीएसई व एनएसई ने हिंदी में जो सामग्री पेश कर रखी है, उसमें पंचतंत्र में लिखी लोमड़ी और सारस की कहानी जैसी फांस है। शिक्षित व जागरूक होनेऔरऔर भी

आजकल सरकार की छोटी से छोटी आलोचना करना भी बड़ा गुनाह हो गया है। लेकिन सच कहने के लिए झूठ व गलत की आलोचना तो करनी ही पड़ती है। वैसे भी देश सबसे बड़ा है और सरकारें तो आती-जाती रहती हैं। अभी हम यह सच सामने लाना चाहते हैं कि समूचा सरकारी तंत्र निवेशकों की शिक्षा व सुरक्षा के नाम पर उन्हें वित्तीय रूप से अशिक्षित और असुरक्षित ही रहना चाहता है ताकि वित्तीय बाज़ार के शातिरऔरऔर भी

हलवाई खुद अपनी मिठाई नहीं खाता। वो ग्राहकों को मिठाई बेचकर कमाता है। लॉटरी का खेल रचानेवाला खुद लॉटरी के टिकट नहीं खरीदता। वह लोगों के लॉटरी खेलने पर ही अपना धंधा करता है। इसी तरह शेयर बाज़ार के कर्ता-धर्ता, बीएसई व एनएसई के सीईओ और अन्य बड़े अधिकारी खुद कभी ट्रेड या निवेश नहीं करते। वे केवल मैनेज करते हैं। दूसरे लोग ट्रेड और निवेश करते हैं, तभी उनका धंधा चमकता है। सरकार उन्हीं के जरिएऔरऔर भी

हम बड़े विचित्र दौर से गुजर रहे हैं। जो जितना ज्यादा झांसा देने में सफल है, वो उतना ही ज्यादा कमा रहा है। कंपनियां विज्ञापनों के जरिए झांसा देती हैं। सेलेब्रिटी कंपनियों के माल बेचकर या सरकारी योजनाओं के विज्ञापन से कमाते हैं। सोचिए कि एक समय अमिताभ बच्चन के सितारे गर्दिश में थे। लेकिन अब तो रिजर्व बैंक से लेकर तेल व भुजिया तक के विज्ञापन से ही वे करोड़ों कमा ले रहे हैं। सचिन सेऔरऔर भी