विनिमय मूल्य शुरुआत में वस्तुओं में निहित था। पांच-छह दशक पहले तक अपने यहां सामान्य किसान बाज़ार में अनाज देकर हल्दी, नमक व साबुन वगैरह लिया करते थे। लेकिन धीरे-धीरे विनिमय का माध्यम मुद्राएं बनने लगीं। मुद्राएं चूंकि संप्रभु होती हैं, देश की सीमाओं में चलती हैं बाहर नहीं तो उन पर सरकारी तंत्र का नियंत्रण बना। देशों का आपसी व्यापार बढता गया तो बाज़ार में मुद्राओं की आपसी विनिमय दर तय होने लगी। मुद्रास्फीति से देशऔरऔर भी

घर में लक्ष्मी, खाते में धन, पर्स में नोट और धंधे में शुभलाभ लाने के दिन आ गए। दीपावली का त्योहार आ गया। लेकिन लक्ष्मी तो माया हैं और धन छाया। अच्छे-खासे कड़कते नोट कैसे महज कागज के टुकड़े बनकर रह जाते हैं, यह सच्चाई पांच साल पहले नोटबंदी समूचे भारत को दिखा चुकी है। दरअसल जिस लक्ष्मी, जिस धन को हम अपने पास लाना चाहते हैं, उसकी मूल धारणा को हमें समझना होगा। हज़ारों साल पहलेऔरऔर भी