जान तो लिया, अब देखें आजमा कर
कोई भी ज्ञान या विद्या तभी तक सार्थक है, जब तक वह व्यवहार की सेवा कर सके। हमने अब तक की 26 कड़ियों में डेरिवेटिव ट्रेडिंग, खासकर ऑप्शन ट्रेडिंग को जानने-समझने की जो कोशिश की, अब उसे व्यवहार के धरातल पर कसने का वक्त आ गया है। अगर वह किसी हद तक रिटेल ट्रेडर के लिए कम से कम रिस्क में ठीकठाक मुनाफा कमाने का माध्यम बन सके, तभी उसे अपनाया जाना चाहिए। अन्यथा, उसे शेयर बाज़ारऔरऔर भी
डेरिवेटिव्स में भी चले डिमांड-सप्लाई
डेरिवेटिव ट्रेडर बहुत उस्ताद किस्म के प्राणी होते हैं। वे सबसे कम समय में कम से कम रिस्क उठाते हुए ज्यादा से ज्यादा संभव रिटर्न कमाने की जुगत में लगे रहते हैं। वे इसका हवाई ख्वाब नहीं देखते, बल्कि ठोस, समझदार, दमदार कोशिश करते हैं। हालांकि बाज़ार में ज़ीरो रिस्क जैसी कोई चीज़ नहीं होती। और, रिस्क ऐसी तितली नहीं जिसे आप मुठ्ठी में बंदकर रख लें। यहां रिस्क कभी भी बैलून की तरह विस्फोटक हद तकऔरऔर भी
जितना उतार-चढ़ाव, उतना ही फायदा
कल हमने ऑप्शन ट्रेडिंग रणनीति के अंतर्गत कवर्ड कॉल, प्रोटेक्टिव पुट, बुल स्प्रेड और बियर स्प्रेड की चर्चा की। आज हम बटरफ्लाई स्प्रेड, स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल रणनीति को समझने की कोशिश करेंगे। ये तीनों ही डेल्टा न्यूट्रल रणनीतियां हैं। इनमें हम स्टॉक की तेजी या मंदी को नहीं, बल्कि उसकी वोलैटिलिटी को आधार बना कर ट्रेडिंग रणनीति तैयार करते हैं। हम जान चुके हैं कि वोलैटिलिटी ज्यादा हो तो ऑप्शन के भाव चढ़ जाते हैं और तबऔरऔर भी
‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा है महज़ राजनीतिक जुमला!
जब हम भारत की बात करते हैं तो व्यापक अर्थों में उसका मतलब होता है वह भारत, जिसका राष्ट्रीय हितों से अलग अपना कोई निजी स्वार्थ नहीं है। न कोई राजनीतिक स्वार्थ और न ही आर्थिक स्वार्थ। इस अर्थ में देशी या विदेशी निजी कंपनियों के हाथों में राष्ट्रीय रणनीतिक व सामरिक महत्व के उद्योग-धंधे और कोयले जैसी भू-संपदा सौंपकर हम भारत को आत्मनिर्भर बनाने का दावा कतई नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए कि जहां सरकार काऔरऔर भी