प्रधानमंत्री ने कोरोना पर गंभीर चिंता जाहिर की। लेकिन कोरोना से अच्छी बात यह हुई कि मांग घटने और रूस व ओपेक देशों में उत्पादन घटाने का समझौता न हो पाने से कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम 18 साल की तलहटी पर आ गए। सरकार इसका लाभ अवाम को देकर देश में माग बढ़ा सकती थी। इससे सुस्त अर्थव्यवस्था थोड़ी चुस्त हो जाती। लेकिन उसने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज़ बढ़ाकर अपना खजाना भर लिया। अब शुक्र का अभ्यास…औरऔर भी

सरकार अगर सुनने व गुनने को तैयार हो तो संकट से निकलने की सटीक राह बतानेवालों की कोई कमी नहीं है। तमाम अर्थशास्त्री बराबर लिखते रहे हैं। इनके सुझावों का सार यह है कि अभी तक हम देश के शीर्ष 10-15 करोड़ लोगों को ध्यान में रखकर उत्पादन करते रहे हैं। अर्थव्यवस्था का फोकस विदेश के बजाय अगर 125 करोड़ लोगों के घरेलू बाज़ार पर हो तो देश का उद्धार हो सकता है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

सरकार के मंत्री-संत्री और मुख्य आर्थिक सलाहकार तक कह रहे हैं कि चीन के संकट का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, बल्कि इससे हमें निर्यात के नए अवसर मिल जाएंगे। लेकिन हकीकत यह है कि चीन हमारा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। हम उसे कार्बनिक रसायन, यार्न, धातु अयस्क, भवन सामग्री व कपास का निर्यात करते हैं। चीन की अभी की स्थिति से हमें 34.8 करोड़ डॉलर का नुकसान होगा। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

ग्लोबल दुनिया के झटके भारत को भी बराबर तेज़ी से लग रहे हैं। अमेरिका ने घबराकर एक पखवाड़े में दूसरी बार ब्याज दर घटा दी। उधर चीन का आंकड़ा आया कि वहां औद्योगिक उत्पादन में तीन दशकों की सबसे ज्यादा कमी आ गई है। इससे भारत के वित्तीय बाज़ार हिल गए। रिजर्व बैंक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सरकारी बांडों पर यील्ड घट गई। शेयर बाज़ार गोता लगा गया। अब मंगलवार की दृष्टि…औरऔर भी

दुनिया में कोरोना वायरस का कहर जारी है। लेकिन क्या वित्तीय बाज़ारों से उसका काला साया अब उठ गया है? क्या उसे जितनी उथल-पुथल मचानी थी, वह अब बीत चुकी है? यह सवाल इस समय हर तरफ पूछा जाने लगा है। वैसे, इस हकीकत से इनकार नहीं कि शेयर बाज़ार में डर का कोप इस समय ग्यारह साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंचा हुआ है। उसने सामान्य स्तर तक आने में वक्त लगेगा। अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी