कंपनियों की मूलभूत मजबूती कभी-कभी उनके शेयरों के भाव में नहीं झलकती। ऐसा प्रायः कम अवधि, कुछ महीने या साल तक होता है। लंबी अवधि में शेयरों के भाव कंपनी की मजबूती पकड़ लेते हैं। इसीलिए लंबी अवधि का निवेश छोटी अवधि की ट्रेडिंग से कम रिस्की होता है। इस पर अगर कंपनी के पास विपुल आस्तियां हों तो अंततः उसका दम शेयरों में दिख ही जाता है। तथास्तु में आज ऐसी ही विपुल आस्तियों वाली कंपनी…औरऔर भी

हर व्यापार में शुरुआती पूंजी चाहिए और अपनी मेहनत व समय के ऊपर उसमें कुछ लागत लगती है। शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग में यह लागत क्या है? आपको जितना स्टॉप-लॉस उठाना पड़ता है, वह इस ट्रेडिंग की लागत है। किसी एक सौदे में 2% और महीने भर 6% प्रतिशत से ज्यादा नुकसान हो जाए तो उस महीने ट्रेडिंग नहीं करनी चाहिए। हमेशा ध्यान रहे कि हमारा लक्ष्य न्यूनतम रिस्क में अधिकतम कमाना है। अब शुक्रवार का अभ्यास…और भीऔर भी

वित्तीय बाज़ार में संस्थाओ की खरीद और बिक्री के स्तर को पकड़ने के लिए कुछ जानकार ‘डिमांड-सप्लाई’ की क्लासेज़ चलाते हैं। वे जितना सिखाते हैं, ऑनलाइन ट्रेडिंग एकेडमी की साइट पर जाकर आप उसे सीख सकते हैं। महज इतने के लिए उन्हें 30-40 हज़ार रुपए देने का कोई फायदा नहीं। वैसे, टेक्निकल एनालिसिस से यह तरीका थोड़ा आगे है क्योंकि यह उसके विभिन्न इडिकेटरों को अपने में समाहित कर लेता है। अब गुरु की दशा-दिशा…और भीऔर भी

शेयर बाजार में क्या थोक भाव होता है? जिस भाव पर देशी-विदेशी वित्तीय संस्थाएं, म्यूचुअल फंड व प्रोफेशनल ट्रेडर कोई स्टॉक खरीदते हैं, वही उसका थोक भाव है और जिस भाव पर उसे निकालते हैं, वह उसका रिटेल भाव। संस्थाओं का यह व्यवहार भावों के रोजाना और साप्ताहिक चार्ट पर आसानी से दिख जाता है। मौजूदा भाव से ठीक पहले भाव जहां से चढ़े और गिरे थे, ये दोनों स्तर बड़े अहम हैं। अब बुधवार की बुद्धि…और भीऔर भी