दिक्कत यह है कि यूजीन फामा की थ्योरी केवल सिद्धांत में काम करती है। असल जीवन में इंसान तार्किक जीव के बजाय भावनात्मक प्राणी के रूप में काम करता है। वह डर, लालच, चिंता व घबराहट का शिकार होता रहता है। हम कभी भी शत-प्रतिशत तर्कों पर नहीं चला करते। भावनाओं में बहते हैं जिनके ज्वार का कोई सूत्र नहीं होता। इसलिए वित्तीय बाज़ार को किसी गणितीय समीकरण में नहीं बांधा जा सकता। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

वित्तीय बाज़ारों के बारे में एक मान्यता चलती है जिसे कहते हैं कुशल बाज़ार परिकल्पना या इफिशिएंट मार्केट हाइपोथिसिस। यूजीन फामा नाम के एक अमेरिकी प्रोफेसर की तरफ से पेश किए गए एक सिद्धांत में माना जाता है कि बाज़ार में शिरकत कर रहे सभी इंसान बेहद तार्किक ढंग से काम करते हैं। उनके पास बाजा़र की सारी ज़रूरी जानकारियां होती हैं जिनके आधार पर वे हिसाब लगाकर ट्रेड या निवेश करते हैं। अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी

शेयर बाज़ार कहां जाएगा, कौन-कौन से स्टॉक्स कब कितना उठ-गिर सकते हैं, यह आजकल बिजनेस चैनल व बिजनेस अखबार ही नहीं, सोशल मीडिया पर भी बताया जाने लगा है। कई वॉट्स-अप व फेसबुक ग्रुप बन गए हैं। बहुत सारी वेबसाइट व यू-ट्यूब चैनल चलने लगे हैं। ये आपको मिनटों में चकरघिन्नी बना सकते हैं। लेकिन क्या इतना आसान है कि शेयर बाज़ार और स्टॉक्स की भावी गति को यूं ही पकड़ लिया जाए? अब मंगल की दृष्टि…और भीऔर भी

वित्तीय बाज़ार के ट्रेडर की ज़िंदगी कत्तई आसान नहीं। ऐसी-ऐसी चीजें हो जाती हैं, ऐसे-ऐसे कारक खड़े हो जाते हैं, ऐसी-ऐसी खबरें आ जाती हैं जिनका दूर-दूर तक कोई अंदेशा नहीं होता और जो भावों को अनचाही दिशा में मोड़ देती हैं। ट्रेडर की सारी गणना, सारी सावधानी खाक में मिल जाती है। लेकिन इस अनिश्चितता के बीच भी भावों की पक्की खबर की घोषणाएं की जाती हैं। आखिर ये कितनी सही हैं? अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में तीन तरह की कंपनियां। पहली, जिनके शेयर बराबर चढ़ रहे हैं और तभी  तभी गिरते हैं जब धंधे या प्रबंधन पर चोट लग जाए। दूसरी, जिनके शेयर बंधे दायरे में भटक रहे हैं। तीसरी, जिनके शेयर लगातार गिरे जा रहे हैं और तभी उठते हैं जब उनसे जुड़ी कोई बड़ी अच्छी खबर आ जाए। पहली ट्रेडिंग के लिए मुफीद। तीसरी लंबे निवेश के लिए। मगर, बीच वाली बेकार। अब तथास्तु में आज की कंपनी…और भीऔर भी