बाज़ार की तार्किक चाल किताबी बात
दिक्कत यह है कि यूजीन फामा की थ्योरी केवल सिद्धांत में काम करती है। असल जीवन में इंसान तार्किक जीव के बजाय भावनात्मक प्राणी के रूप में काम करता है। वह डर, लालच, चिंता व घबराहट का शिकार होता रहता है। हम कभी भी शत-प्रतिशत तर्कों पर नहीं चला करते। भावनाओं में बहते हैं जिनके ज्वार का कोई सूत्र नहीं होता। इसलिए वित्तीय बाज़ार को किसी गणितीय समीकरण में नहीं बांधा जा सकता। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी