भले ही दो दिन बाद शुक्रवार को रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ाने की तैयारी में बैठा हो, लेकिन खुद उसका मानना है कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 में कंपनियों का पूंजी निवेश उम्मीद से कम रह सकता है। इसकी खास वजह लागत सामग्रियों के महंगा होने के साथ-साथ पूंजी का महंगा होना या दूसरे शब्दों में ब्याज दरों का ज्यादा होना है।
रिजर्व बैंक ने मंगलवार को जारी सितंबर महीने की अपनी बुलेटिन में साफ-साफ कहा है कि आशंका इस बात की है कि लागत सामग्रियों की कीमत ज्यादा होने और पूंजी की बढ़ती लागत के चलते औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर धीमी पड़ जाएगी। इससे 2011-12 के दौरान निवेश की मांग को लेकर चिंता पैदा हो रही है। अभी तक के आकलन के हिसाब से नहीं लगता कि पूंजी खर्च का पिछला अनुमान किसी तरह पूरा हो सकता है। आसार इसी बात के है कि 2011-12 में पूंजी निवेश पिछले साल से कम रहेगा।
उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक के मुताबिक बीते साल 2010-11 में कॉरपोरेट क्षेत्र का कुल पूंजी खर्च 3,82,641 करोड़ रुपए रहा है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 के लिए कंपनियों ने 2,74,919 करोड़ रुपए के पूंजी निवेश की योजनाएं पहले से घोषित कर रखी हैं। यह पिछले साल किए गए निवेश को आगे बढ़ाएगा। अगर इस साल के निवेश को पिछले साल के निवेश की बराबरी करनी है तो निजी कॉरपोरेट क्षेत्र की तरफ 1,07,722 करोड़ रुपए के नए पूंजी निवेश के प्रस्ताव आने चाहिए। लेकिन वास्तविक हालात को देखते हुए इतना निवेश आने की गुंजाइश नहीं दिख रही। यह मानना है रिजर्व बैंक का।
रिजर्व बैंक का यह स्वर एक तरीके से स्वीकृति है कि ब्याज दरें बढ़ने के चलते देश में पूंजी निवेश और औद्योगिक विकास प्रभावित हो रहा है। इससे यह संकेत भी निकाला जा सकता है कि इस बार मौद्रिक नीति की मध्य-त्रैमासिक समीक्षा में वह ब्याज दरों को जस का तस रहने दे सकता है। एक दिन पहले ही घोषित जुलाई माह की महज 3.3 फीसदी औद्योगिक विकास दर ने वैसे भी वित्त मंत्री से लेकर रिजर्व बैंक गवर्नर तक, सबको परेशान कर रखा है।