अण्णा आंदोलन और उसके बाद हुए सत्ता परिवर्तन के बाद लगा था कि अब देश से भ्रष्टाचार व कालाधन खत्म हो जाएगा। झूठ का नाश हो जाएगा। असत्य हमेशा-हमेशा के लिए हार गया और सत्य की पताका लहराती रहेगी। लेकिन सच क्या है? भ्रष्टाचार ऊपर से लेकर नीचे तक अब भी फैला हुआ है। राफेल से लेकर पेगासस और इलेक्टोरल बॉन्डों तक, फेहरिस्त बड़ी लम्बी है। राजनीति से लेकर अर्थनीति समेत सार्वजनिक जीवन तक में असत्य व झूठ का ही बोलबाला है। फर्क बस इतना पड़ा है कि सत्ता व सरकार के आंखों की शर्म इस कदर मर गई है कि वे मानने को तैयार ही नहीं कि कहीं कोई भ्रष्टाचार है। उन्हें कोई झूठा कहे, इससे पहले विरोधियों को ही नहीं, बल्कि निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तक को झूठा ठहरा देते हैं। अदालतों के न्याय मांगो तो वे या तो मामला लटका देती हैं या बोलती हैं कि साक्ष्यों का अभाव है। सच को उजागर करते आरटीआई कार्यकर्ताओं व पत्रकारों का दमन व हत्या हो रही है। आरटीआई कानून तक की धार भोंथरी कर दी। सरकारी भ्रष्टाचार को बचाने के लिए चुपचाप कानून बदल दिया। फिर भी बात भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस की! अब बुधवार की बुद्धि…
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