वित्त मंत्री ने वॉशिंगटन में इतना भर कहा कि इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 8.5 फीसदी रहेगी और मुंबई में हिंदुस्तान यूनिलीवर, आईटीसी और कॉलगेट पामोलिव के शेयर कम से कम बीस सालों के शिखर पर पहुंच गए। इनमें सबसे ज्यादा 10.33 फीसदी की बढ़त कॉलगेट में दर्ज की गई जो 1011.10 रुपए पर जा पहुंचा। हालांकि बंद हुआ 7.75 फीसदी की बढ़त के साथ बीएसई (कोड – 500830) में 987.50 रुपए और एनएसई (कोड – COLPAL) में 986 रुपए पर।
आप यकीन नहीं मानेंगे, मुझे कल ही कॉलगेट पर लिखना था। सब खोजकर रखा था। बस, सूत्र में पिरोकर लिख देना था। फिर सोचा कि आज पीटीसी इंडिया को निपटाते हैं, कॉलगेट को कल देखेंगे। लेकिन दिन में बिजनेस चैनलों पर देखा तो कॉलगेट ने गदर काट रखी थी। असल में शेयर बाजार में सही वक्त और सही मौके पर सही चोट की यही अहमियत व कीमत होती है। जरा-सा चूके तो बाजी हाथ से बाहर। लेकिन यह ट्रेडरों की मानसिकता है। वैसे तो दूरगामी निवेश की सोच रखनेवालों पर भी इसका फर्क पड़ता है। लेकिन बहुत ज्यादा नहीं।
तो, आइए देखते हैं कि कॉलगेट की कुंडली क्या कहती है? उसमें अभी निवेश का लग्न बन रहा है या नहीं? ध्यान दें – हिदुस्तान यूनिलीवर व आईटीसी सेंसेक्स व निफ्टी में शामिल हैं। लेकिन कॉलगेट इनमें से किसी सूचकांक में नहीं है। कॉलगेट का शुद्ध लाभ वित्त वर्ष 2010-11 में साल भर पहले के 423.26 करोड़ रुपए की तुलना में 4.89 फीसदी घटकर 402.58 करोड़ रुपए रह गया है। कंपनी की इक्विटी मात्र 13.60 करोड़ रुपए है जो एक रूपए अंकित मूल्य के शेयरों में बंटी है। शुद्ध लाभ को शेयरों की कुल संख्या से भाग देने पर कंपनी का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) निकलता है 29.60 रुपए। कल के बंद भाव पर हिसाब लगाएं तो उसका शेयर इस समय 33.36 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। पी/ई का यह स्तर उसने अक्टूबर 2009 के बाद पहली बार हासिल किया है। उसकी प्रति शेयर बुक वैल्यू मात्र 28.24 रुपए है।
वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी द्वारा अपने कामकाज से हासिल शुद्ध कैश फ्लो में फीसदी घट गया है। उसका एक संयंत्र अभी तक पूरी तरह कर-मुक्ति के दायरे में आता था। लेकिन अब यह ‘कृपा’ न रहने से उसकी कर-अदायगी 90.72 फीसदी बढ़कर 61.54 करोड़ रुपए से सीधे 117.37 करोड़ रुपए पर पहुंच गई। कंपनी ने क्षमता इतनी बढ़ी ली है कि वह उसका पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रही है। 2010-11 में उसके क्षमता इस्तेमाल का स्तर मात्र 62 फीसदी रहा है। इसके चलते जहां कंपनी की रोजमर्रा के काम की कार्यशील पूंजी जरूरत बढ़ गई है, वहीं उसके पास अनबिके माल की इनवेंटरी बढ़ती जा रही है।
कंपनी का मुख्य धंधा टूथपेस्ट का है, लेकिन बिक्री उसकी बढ़ी है टूथब्रश और शेविंव ब्रश की। फिर भी टूथब्रश के भारतीय बाजार में उसकी हिस्सेदारी 40.9 फीसदी से घटकर 40.3 फीसदी रह गई है। असल में भले ही कॉलगेट का ब्रांड नीचे गांव-गांव तक फैला हो, लेकिन बाजार के ऊपरी हिस्से में उसे प्रॉक्टर एंड गैम्बल के अंतरराष्ट्रीय ब्रांड ओरल-बी से तगड़ी चुनौती मिल रही है। शहरी मध्यवर्ग यकीनन टूथब्रश में कॉलगेट से ज्यादा ओरल-बी को तरजीह देने लगा है।
ऊपर से कंपनी के लिए कच्चे माल की लागत उसकी बिक्री से ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। 2010-11 में उसकी बिक्री 13.15 फीसदी बढ़कर 2220.56 करोड़ हो गई, लेकिन इसी दौरान उसके कच्चे माल की लागत 17.47 फीसदी बढ़कर 739.52 करोड़ रुपए हो गई। कॉलगेट जैसी कंपनियों को विज्ञापनों पर भी जमकर खर्च करना पड़ता है। बीते साल उसका विज्ञापन खर्च 16.66 फीसदी बढ़कर 349.31 करोड़ रुपए हो गया है।
दरअसल, कंपनी का आकलन है कि भारत में टूथपेस्ट की सालाना खपत प्रति व्यक्ति अभी 118 ग्राम है, जबकि दक्षिण अफ्रीका तक में यह 244 ग्राम और चीन में 255 ग्राम है। लेकिन सवाल उठता है कि दातून के भरोसे चलनेवाली व्यापक भारतीय आबादी तक टूथपेस्ट पहुंचेगा कैसे? दूसरे, जिस तरह साबुन व डिटरजेंट में निरमा से लेकर घड़ी व उजाला जैसे भारतीय ब्रांडों ने हिंदुस्तान लीवर व प्रॉक्टर एंड गैम्बल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चुनौती दी है, क्या उसी तरह स्थानीय ब्रांड टूथपेस्ट में कॉलगेट को बाहर नहीं कर देंगे? आखिर इसमें कोई उन्नत तकनीक तो शामिल नहीं है! अमर रेमेडीज जैसी कंपनियां सीमित इलाको में ऐसा कर भी रही हैं। फिर डाबर जैसे ब्रांडों की तगड़ी साख ग्रामीण व कस्बाई इलाकों में है।
कंपनी 22 जुलाई को चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही के नतीजे घोषित करनेवाली है। इसके सामने आने के बाद ही इसमें निवेश के बारे में सोचना चाहिए। वैसे, साफ कहूं तो मुझे कॉलगेट की चमक बड़ी हवा-हवाई लगती है। अनार की तरह फूटना और बुझ जाना इसकी नियति है। इसकी कुंडली बताती है कि यह लंबे समय के निवेश के काबिल नहीं है। हां, लाभांश घोषित करने में कंपनी बड़ी उस्ताद है। उसने चालू वित्त वर्ष 2011-12 के लिए अभी से एक रुपए के शेयर पर 8 रुपए (800 फीसदी) का अंतरिम लाभांश घोषित कर दिया है। वैसे, कंपनी की इक्विटी का 51 फीसदी प्रवर्तकों के पास है, जबकि एफआईआई के पास इसके 18.72 फीसदी और डीआईआई के पास 7.19 फीसदी शेयर हैं।